सूक्ष्मदर्शी किसे कहते हैं - sukshma darshi kya hai

सूक्ष्मदर्शी जिसे माइक्रोस्कोप भी कहाँ जाता है। यह एक उपकरण है जिसका उपयोग सूक्ष्म वस्तुओं को बड़ा रूप में देखने के लिए किया जाता है। जिसे हम सामान्य आंखों से देख भी नहीं सकते उसे सूक्ष्मदर्शी में कई गुना बड़ा कर देख सकते है। सूक्ष्मदर्शी कई प्रकार के होते हैं, और उन्हें विभिन्न तरीकों से समूहीकृत किया जा सकता है।

सूक्ष्मदर्शी के प्रकार

 सूक्ष्मदर्शी को उनके गुणों के आधार पर निम्न प्रकार से बांटा गया है -

  1. संयुक्त सूक्ष्मदर्शी।
  2. प्रकाश सूक्ष्मदर्शी। 
  3. इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी। 

1. संयुक्त सूक्ष्मदर्शी  

एक ऐसा उपकरण है जिसकी संरचना कुछ इस प्रकार होती है की इसे आसानी से पकड़ कर एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जा सकता है। इसमें मुख्य रूप से प्रकाश एवं लेंस का प्रयोग किया जाता है। सूक्ष्मदर्शी निम्न भागों से मिलकर बना होता है -

1. बॉडी ट्यूब- बॉडी ट्यूब सूक्ष्मदर्शी का मेन हिस्सा होता है जो की लम्बा होता और इसके ऊपर अंतर नली तथा नेत्रक एवम् निचले भाग में दो या तीन अभीदृशयक लेंस लगे होते हैं। यह नली बेलकार होता है। एवम् भुजा के द्वारा जुड़ी होती है, तथा इसके नीचे नोज पीस लगी होती है।

2. नेत्रक - यह बॉडी ट्यूब से लगे अंतर नली के ऊपर होता है। इसी की सहायता से बाएं आँख से किसी वस्तु के आवर्धित रूप को देखा जाता है। यह सूक्ष्मदर्शी का सबसे ऊपर का भाग होता है।

3. नोज पीस - यह बॉडी ट्यूब के नीचे का भाग है, जिसमें 2-3 अभीदृशयक लेंस लगे होते हैं जिसको आसानी से घुमाया जा सकता है। यह गोल तथा प्लेटनुमा होता है जिसकी सहायता से इसे घुमाया जाता है।

4. अभीदृश्यक लेंस - ये नोज पीस के नीचे स्थित होता है जो 10X , 40X एवं 100 X पावर के होते हैं। इस लेंस को वस्तु के ऊपर फोकस किया जाता है।

5. मंच -यह सूक्ष्मदर्शी का मध्य भाग है जो की भुजा से जुड़ा होता है जिसमें एक छिद्र होता है इस छिद्र में स्लाइड को फिट किया जाता है। यह दर्पण के ऊपर होता है जो प्लेट के समान चौड़ा होता है।

6. कण्डेन्सर - मंच के नीचे का भाग है जो प्रकाश को एकत्रित कर स्लाइड पर फोकस करता है। इसके न होने पर वस्तु का साफ दृश्य नही बनता है।

7. आइरिस डायफ्राम - डायफ्राम कण्डेन्सर के नीचे का भाग है जो की उसके नीचे फिट होता है। इसके द्वारा प्रकाश मार्ग को समायोजित किया जाता है।

8. दर्पण - दर्पण प्रकाश को परावर्तित करने के लिये सूक्ष्मदर्शी में लगाया जाता है जो की आधार से थोड़ा ऊपर होता है और प्रकाश को सीधे स्लाइड की ओर फोकस करता है। इसे रिफ्लेक्टर भी कहा जाता है।

9. कोर्स एडजस्टमेंट - यह बॉडी ट्यूब को ऊपर नीचे करने के लिए लगाया जाता है , जो भुजा से जुड़ा होता है। इसका प्रयोग लेंस को वस्तु पर समायोजित करने के लिए किया जाता है।

10. फाइनल एडजस्टमेंट - यदि लेंस को थोड़ा बहुत ऊपर नीचे करना होता है तो इसका प्रयोग किया जाता है। जो की आधार से थोड़ा ऊपर लगा होता है।

11. आधार - यह सूक्ष्मदर्शी का सबसे नीचे का भाग होता है जो जमीन के ऊपर होता है सूक्ष्मदर्शी का बेलेंश बनाकर रखता है। यह घोड़े के नाल के आकार का होता है, जो ठोस लोहे का बना होता है।

12. भुजा - इसके द्वारा सूक्ष्मदर्शी का आधार एवं बॉडी ट्यूब जुड़े होते हैं। यह मुडा हुआ होता है जिकसो पकड़ कर उठाया जा सकता है।

संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की सीमाएं 

इस सूक्ष्मदर्शी की सीमाये जिसकी वजह से इसका प्रयोग इलेक्ट्रोन सूक्ष्मदर्शी की भाँति नही किया जा सकता है - इसके द्वारा अधिकतम 2000-4000 गुना आवर्धन ही सम्भव है। अत्यंत छोटे वस्तु जैसे कोशिकांग का अध्ययन इसकी सहायता से नही किया जा सकता है।

संयुक्त सूक्ष्मदर्शी का उपयोग

इसका प्रयोग विभिन्न लैबों में तथा सूक्ष्म जीवों के अध्ययन में किया जाता है। इसकी सहायता से ही विभिन्न कार्य सफल हो पाये हैं,और विज्ञान के क्षेत्र में इसका बहुत बड़ा योगदान है। सूक्ष्मदर्शी को एक प्रायोगिक उपकरण के रूप में जीव विज्ञान , रसायन विज्ञान आदि क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता है।

2. इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी 

इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी का इतिहास से वर्तमान का सफर - 20 वीं शताब्दी में इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का विकास जीव विज्ञान एवं भौतिक विज्ञान के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी इलेक्ट्रोन माइक्रोस्कोप के माद्यम से किसी वस्तु का लाखो गुना आवर्धित प्रतिबिम्ब बनता है। 

इसके लिए इलेक्ट्रॉन बिम का उपयोग किया जाता है। इस माइक्रोस्कोप का अविष्कार नॉल एवं रस्का (1931) नामक दो जर्मन वैज्ञानिक द्वारा किया गया। इसका व्यसाय के क्षेत्र में सर्वप्रथम उपयोग सन 1940 में किया गया। 

इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी का सिद्धांत 

इलेक्ट्रॉन बीम में बहुत छोटी तारंगदैधर्य वाले विधुत चुम्बकीय तरंग के गुण होते हैं। इसका तरंगदैधर्य विधुत क्षेत्र उत्पन्न करने वाले वोल्टेज के वर्गमूल का व्युत्क्रमानुपाती होता है।

उदाहरण के रूप में 80 KV विधुत द्वारा उत्पन्न इलेक्ट्रॉन बीम का तरंगदैधर्य 0.05 A होता है। इलेक्ट्रोन बीम का उत्पादन इलेक्ट्रॉन गन द्वारा होता है। बीम्स को माइक्रोस्कोप के अन्य अंगों की सहायता से संकेंद्रित किया जाता है एवं इसके बाद इन्हें विधुत चुम्बकीय स्तरों के द्वारा फोकस किया जाता है।

सूक्ष्मदर्शी का मतलब सूक्ष्म वस्तु को देखने के लिए प्रयुक्त उपकरण से है। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी एक प्रकार का उपकरण का नाम है, जिसका प्रयोग ऐसे सूक्ष्म वस्तुओं को देखने के लिए किया जाता है जिनको सामान्य सूक्ष्मदर्शी से देखना असम्भव होता है 

तो आओ जाने की ये इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी का इतिहास से वर्तमान का सफर - 20 वीं शताब्दी में इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का विकास जीव विज्ञान एवं भौतिक विज्ञान के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी इलेक्ट्रोन माइक्रोस्कोप के माद्यम से किसी वस्तु का लाखो गुना आवर्धित प्रतिबिम्ब बनता है। 

इसके लिए इलेक्ट्रॉन बिम का उपयोग किया जाता है। इस माइक्रोस्कोप का अविष्कार नॉल एवं रस्का (1931) नामक दो जर्मन वैज्ञानिक द्वारा किया गया। इसका व्यसाय के क्षेत्र में सर्वप्रथम उपयोग सन 1940 में किया गया। 

इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी का सिद्धांत 

इलेक्ट्रॉन बीम में बहुत छोटी तारंगदैधर्य वाले विधुत चुम्बकीय तरंग के गुण होते हैं। इसका तरंगदैधर्य विधुत क्षेत्र उत्पन्न करने वाले वोल्टेज के वर्गमूल का व्युत्क्रमानुपाती होता है।

उदाहरण के रूप में 80 KV विधुत द्वारा उत्पन्न इलेक्ट्रॉन बीम का तरंगदैधर्य 0.05 A होता है। इलेक्ट्रोन बीम का उत्पादन इलेक्ट्रॉन गन द्वारा होता है। बीम्स को माइक्रोस्कोप के अन्य अंगों की सहायता से संकेंद्रित किया जाता है एवं इसके बाद इन्हें विधुत चुम्बकीय स्तरों के द्वारा फोकस किया जाता है।          

इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी के प्रकार 

इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप को दो प्रकारों में बांटा गया है 

  1. ट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप ( TEM )
  2. स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप ( SEM )

1. TEM - इस माइक्रोस्कोप में इलेक्ट्रॉन का मार्ग , प्रकाश सूक्ष्मदर्शी में प्रकाश की किरणों के अनुरूप होता है। इलेक्ट्रोन गन से प्रेक्षित इलेक्ट्रॉन बीम विधुत चुम्बकीय लेंसों की श्रेणी से होकर निकलती है।

2. SEM - इस सूक्ष्मदर्शी का विकास बाद में हुआ जिसकी कार्य करने का सिद्धांत TEM से अलग है। इसमें नमूने की सतह को इलेक्ट्रॉन की पतली बीम से विकिरणीकृत किया जाता है। जिससे इलेक्ट्रॉन संकेत उत्पन्न होते हैं। इन विकिरणों के कारण नमूने से कम ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉन निकलते हैं,जिन्हें धनावेशित प्लेट या एनोड पर एकत्रित किया जाता है। विधुत संकेतों का उपयोग नमूने के प्रतिबिम्ब उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।

इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की क्रियाविधि

TEM में वस्तु का आवर्धित चित्र देखने के लिए उच्च निर्वात उत्पन्न करना आवश्यक होता है, क्योकि इलेक्ट्रॉन निर्वात में ही गमन करते हैं। इसके लिए लीये गए पदार्थ को पूर्णरूपेण निर्जलीकृता करना आवश्यक होता है।

कण्डेन्सर लेंस इलेक्ट्रोन बीम को नमूने पर समानान्तरित करता है और आवर्धन लेंसों द्वारा आवर्धित चित्र प्राप्त होता है। यह प्रतिबिम्ब एक ' फॉस्फोरेसेन्ट स्क्रीन ' के सम्पर्क मे आने पर दृश्य हो जाती है। एक मिलियन KV के त्वरण वोल्टेज वाला अभी-अभी विकसित किया। TEM का इलेक्ट्रॉन बीम 1 माइक्रोमीटर मोटे नमूने का भी प्रतिबिम्ब आसानी से बना सकता है। 

SEM में विधुत संकेतों का उपयोग नमूने का प्रतिबिम्ब उत्पन्न करने में किया जाता है। स्कैनिंग जेनरेटर के उपयोग द्वारा इलेक्ट्रॉन बीम को नमूने में से चित्र रेखा की तरह गमन कराया जाता है। एनोड पर द्वितीयक इलेक्ट्रॉन के टकराने से उत्पन्न संकेतों को टेलीविजन तंत्र की तरह स्कैंन कर कैथोड पर प्रतिबिम्ब उत्पन्न किया जाता है। 

SEM की फोकस मापने की गहराई कई मिलीमीटर होती है। इसके द्वारा त्रिविमीय चित्र प्राप्त किया जाता है।

इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी का उपयोग 

1. इसकी अधिक आवर्धन क्षमता के कारण इसका प्रयोग अत्यंत छोटे कोशिकांग के अध्ययन में किया जाता है।
2. सूक्ष्म जीवो , विषाणु ,स्पोर्स आदि के अध्ययन में यह सहायक होता है।
3. इसके सहायता से नमूने की सतह का टोपोग्राफी का अध्ययन भी किया जाता है।
4. कोशिआंगो के अलावा बड़े कोशिकांगो में पाये जाने वाले वृहद जैविक अणुओं की संरचना का अध्ययन भी इसके द्वारा किया जाता है

इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की सीमाएं

वस्तु के अत्यंत आवर्धित चित्र बनाने की क्षमता के बावजूद इसकी अपनी कुछ कमियां हैं। चूंकि वस्तु का अध्ययन करने के लिए पूर्ण निर्वात की आवश्यकता होती है अतः जीवित वस्तु का अध्ययन करने में कठिनाई होता है। 
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