डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल का जीवन परिचय

डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल का जन्म उत्तरप्रदेश के मेरठ जनपद के खेड़ा नामक गाँव में सन् 1904 में हुआ। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि ग्रहण करने के पश्चात् लखनऊ विश्वविद्यालय से पी. एच. डी. तथा डी. लिट् की उपाधि प्राप्त की। हिन्दी के शोध सम्बन्धी सांस्कृतिक लेखकों में आपका नाम प्रधान रूप में लिया जाता है।

आपने अनेक वर्षों तक दिल्ली राष्ट्रीय संग्रहालय के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया। आप अन्तिम समय ताशी विश्वविद्यालय में इंडोलॉजी के प्रोफेसर पद पर कार्यरत थे। डॉ. साहब आजीवन इतिहास, पुरातत्व, संस्कृत और हिन्दी साहित्य की साधना में उन्हें पुरस्कृत करके उनकी सेवाओं का सम्मान किया।

कृतियाँ - (1) निबन्ध संग्रह - भारत की एकता, पृथ्वी-पुत्र, कला और संस्कृति, कल्पवृक्ष, वाग्धारा। (2) समीक्षा-मलिक मुहम्मद जायसी का पद्यावत, कालिदास के मेघदूत की संजीवनी व्याख्या। (3) शोध साहित्य... पाणिनिकालीन भारत।

(4) सांस्कृतिक-भारत की मौलिक एकता, हर्षचरित एक सांस्कृतिक अध्ययन । (5) सम्पादन-पोद्दार अभिनन्दन अन्य। (6) अनुवाद-हिन्दू सभ्यता, पाएदेव पुराणा।

भाषा शैली - डॉ. अधचाल प्रद्यपि संस्कृत और पालि के विद्वान थे, किन्तु उनकी भाषा खड़ी बोली, सरल तथा सुवोध है। भाषा संस्कृतनिष्त, परिमार्जित प्रौद्ध एवं प्रॉजल है, जिसमें गम्भीरता के साथ सुबोधता, सरलता और प्रवाह है। अंग्रेजी उटू का जपपदीय भौतियों के शब्दों का प्रयोग कम ही हुआ है। 

आलोचनात्मक, समीक्षात्मक, विवरणात्मक, गवेषणात्मक शैली का प्रयोग हुआ है। निबन्ध की गहराई विद्यमान है। उनकी सूत्र-शैली अत्यन्त सरल एवं मार्मिक है।

साहित्य जगत में स्थान-आप भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के अन्वेषक इतिहास तथा पुरातत्व के मर्मज्ञ विद्वान हैं। उनका गरिमामय व्यक्तित्व उनके निबन्धों में व्यक्त हुआ है। 

डॉ. अग्रवाल के हृदय में प्राचीन भारत के प्रति सम्मान है। उन्होंने वैदिक साहित्य, दर्शन, पुराण, उपनिषद्, महाभारत आदि से सम्बन्धित अनेक ग्रन्थ एवं लेख लिखकर, हिन्दी साहित्य भारती की वृद्धि की है। 

उनके लेख राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत हैं। अतीत के प्रति मोह को आधुनिकता से समन्वित करना चाहते हैं । हिन्दी के उच्चकोटि के निबन्धकारों में अग्रवाल जी का महत्वपूर्ण स्थान है।

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