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आचार्य नरेन्द्र देव के अनुसार युवकों के प्रति राष्ट्र के संचालकों का क्या दायित्व है।

आचार्य नरेन्द्र देव के अनुसार राष्ट्र के संचालकों का कर्तव्य है कि बदली हुई परिस्थिति में, ऐसे विधानों और उपायों को प्रशस्त करें जिनसे युवकों की मनोवृत्ति बदले और वे सभी शक्तियों का विनियोग रचनात्मक कार्यों में कर सकें। 

आचार्य जी के विचार में पहले तो पुरानी विचारधारा को छोड़ना कठिन होता है और दूसरी ओर समाज के नेता पुरानी मनोवृत्ति को बदलने का प्रयास नहीं करते तब कठिनाई और बढ़ जाती है। पुरानी मनोवृत्ति को बदलने का उपाय, युवकों के अधिकारों को स्वीकार करता है।

जब तक नई पीढ़ी, आने वाली पीढ़ी की शिक्षा-दीक्षा का भार अपने ऊपर नहीं लेगी और उसे विकास का अवसर नहीं देगी, वह इतिहास के सम्मुख दोषी ठहराई जायेगी।

आचार्य जी का यह भी अभिमत है कि युवक शक्ति के भण्डार होते हैं । वे बड़े भाव-प्रवण भी होते हैं। 

वे शूरता, पराक्रम दिखाने के किसी भी अवसर को छोड़ना नहीं चाहते। उनकी कामना रहती है कि वे प्रत्येक क्षेत्र में नेतृत्व करें। अतः उन्हें काम करने के मौके मिलने चाहिए। 

अतः राष्ट्र के संचालकों का यह परम दायित्व बनता है कि वे युवकों के लिए ऐसा मार्ग प्रशस्त करें, जिससे उनके शक्ति का सदुपयोग किया जा सके। यदि ऐसा नहीं किया गया तो दूसरे असामाजिक एवं अंतर्राष्ट्रीय शक्तियाँ, उसकी शक्ति और कोमल भावनाओं का दुरुपयोग करने लगेंगे।

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