ग्रामीण अधिवास के प्रकार बताइए

ग्रामीण अधिवास चार प्रकार के होते हैं।

1. सघन बस्ती - इस बस्ती में मकान पास-पास एवं आपस में जुड़े होते हैं। गलियाँ सँकरी होती हैं। ऐसी बस्ती में जनसंख्या का संकेन्द्रण गाँव के केन्द्र की ओर होता है। इनमें मकानों को बनाने की कोई योजना नहीं होती है । इस बस्ती की रचना सुरक्षा, पर्याप्त ऊपजाऊ कृषि भूमि, भूमिगत जल का अभाव आदि कारणों से होता है। 

इन गाँवों की जनसंख्या प्रायः अधिक होती है। सिंधु, गंगा, ब्रम्हपुत्र का मैदान, नील नदी की घाटी आदि के उपजाऊ कछारी मैदानों में सघन बस्तियाँ मिलती हैं।

 2. संयुक्त बस्ती - इसके अन्तर्गत ऐसी ग्रामीण बस्तियाँ आती हैं, जिनमें एक मुख्य गाँव होता है और उसके निकट उसके पुरवेबने होते हैं। मुख्य बस्ती से अलग एक या एक से अधिक पुरवे या टोला के स्थापित होने का कारण मुख्य बस्ती का ज्यादा बड़ा आकार, सघन बसाव एवं स्थान का अभाव हो जाना होता है। 

ऐसी स्थिति में कुछ लोग गाँव की सीमा पर जाकर मकान बनाकर रहने लगते हैं। धीरे-धीरे वहाँ एक पुरवा का विकास हो जाता है। ऐसी ग्रामीण बस्ती गंगा, यमुना के मैदान में हजारों की संख्या में पायी जाती है। 

3. अपखण्डित बस्ती - अपखण्डित बस्ती में मकान एक-दूसरे से पृथक्-पृथक् कुछ दूरियों पर बने होते हैं, किन्तु सभी घर मिलाकर एक बस्ती का निर्माण करते हैं। कहीं-कहीं दो-दो या तीन-तीन मकानों के पुरवे भी पाये जाते हैं । इन सबको मिलाकर एक बस्ती बनती है। 

अपखण्डित बस्ती के निर्माण में जाति और धर्म संरचना का विशेष महत्व होता है। गंगा-घाघरा के दोआब, उत्तरी गंगा के बाढ़ग्रस्त क्षेत्र एवं बंगाल के डेल्टाई क्षेत्र में ऐसी बस्तियाँ मिलती हैं।

4. प्रकीर्ण बस्तियाँ  - इन्हें एकाकी बस्ती भी कहते हैं। इस प्रकार की बस्ती में घर दूर-दूर बने होते हैं और इनके मध्य में कृषि क्षेत्र होता है। इन बस्तियों का निर्माण बाढ़ के भय, अनुपजाऊ भूमि, सुरक्षा की सुलभता आदि के कारण होता है । 

पर्वतीय क्षेत्रों में प्राय: इसी प्रकार की बस्तियाँ मिलती हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में कृषि फार्मों पर बने मकान, ‘फार्म स्टेड’ इसके अच्छे उदाहरण हैं। 

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