ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप का वर्णन कीजिए

ग्रामीण बस्तियों के बसावट की विभिन्नता के कारण इसके कई प्रकार के प्रतिरूप दिखाई देते हैं

1. आयताकार अथवा चौक पट्टी प्रतिरूप - आयताकार गाँवों का विकास दो मार्गों या सड़कों के चौराहों पर चारों ओर होता है, जिससे गाँव का आकार आयताकार बन जाता है । इन गाँवो में गलियाँ भी प्रायः सीधी होती हैं तथा वे एक-दूसरे को समकोण पर काटती हैं। भारत में गंगा के मैदान में अधिकांश गाँव इसी प्रकार के पाये जाते हैं।

2. पंक्तिनुमा या रैखिक प्रतिरूप जब किसी गाँव का विकास किसी सड़क, मार्ग, नदी या नहर के किनारे होता है, तो गाँव का आकार एक रेखा के समान होता है। इन गाँवों में समानान्तर गलियाँ होती हैं और मकान एक-दूसरे से सटेसटे होते हैं।

इन गलियों के दोनों ओर प्रायः मकानों के द्वार या दुकानें आदि होती हैं। इस प्रकार की रैखिक ग्रामीण बस्तियाँ समुद्री किनारों पर भी पायी जाती हैं।

3. त्रिभुजाकार प्रतिरूप  — सड़कों के मिलन स्थल पर सड़कों के किनारेकिनारे अधिवास विकसित हो जाते हैं अथवा सड़कों के मिलन स्थल में बने त्रिभुजाकार भूखण्ड पर अधिवास विकसित हो जाने पर त्रिभुजाकार गाँव बन जाता है। पर्वतीय प्रदेशों के सड़क तथा नदी के मध्य त्रिभुजाकार क्षेत्र में ऐसे अनेक गाँव मिलते हैं ।

4. अरीय प्रतिरूप - जिस स्थान पर कई दिशाओं से कच्ची या पक्की सड़कें आकर मिलती हैं तो इस मिलन स्थल को केन्द्र बनाकर इससे निकले मार्गों के किनारे-किनारे, मकान बनते जाते हैं। इससे एक अरीय आकार के गाँव बन जाते हैं ।

5. तारा प्रतिरूप - गाँव का अरीय प्रतिरूप और अधिक विकसित हो जाने पर तारा प्रतिरूप में परिणित हो जाता है।

6. वृत्ताकार अथवा गोलाकार प्रतिरूप – कभी-कभी किसी गोलाकार झील या तालाब के किनारे-किनारे बस्ती बस जाती है, जिससे गोलाकार गाँव बन जाता है।

7. पंखानुमा प्रतिरूप – नदियों के डेल्टाई भागों और पर्वत पादं भागों में कछारी पंखों के प्रदेश में इस प्रकार के गाँव बन जाते हैं।

8. चौकोर प्रतिरूप – मरुस्थलों में गाँव के बीच खुली आयताकार भूमि छोड़ दी जाती है और इसके चारों ओर आँधी से उड़ने वाली बालू से बचने हेतु गाँव के चारों ओर चारदीवारी बना ली जाती हैं।

9. सीढ़ीनुमा प्रतिरूप  – पर्वतीय ढालों पर विभिन्न ऊँचाइयों पर बने मकानों के गाँव सीढ़ीनुमा आकार के बन जाते हैं।

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