निजी क्षेत्र के उद्योग किसे कहते हैं?

निजी क्षेत्र का अर्थ जिसमें उत्पादन साधनों पर निजी व्यक्तियों का स्वामित्व होता है। इस लाभ-प्राप्ति के उद्देश्य से ही इसका प्रयोग किया जाता है। आज निजी क्षेत्र का अर्थ काफी हद तक परिवर्तित हो चुका है।

19 वीं शताब्दी तक निजी उद्यम का तात्पर्य ऐसे उद्यम से होता था जिसका स्वामित्व एक या दो व्यक्तियों के हाथों में होता था किन्तु आज इसका तात्पर्य उन उद्यमों से है।

निजी क्षेत्र के उद्योग

निजी क्षेत्र उद्योग अर्थव्यवस्था का वह हिस्सा है जो व्यक्तियों और कंपनियों द्वारा लाभ प्राप्त करने के लिए चलाया जाता है और इस पर देश का नियंत्रण नहीं होता है। इसमें उन सभी लाभकारी व्यवसायों को शामिल किया जाता है जो सरकार द्वारा संचालित नहीं हैं। जो कंपनियां सरकार चला रहे हैं, वे सार्वजनिक क्षेत्र के रूप में जाने जाते हैं, जबकि दान और अन्य गैर-लाभकारी संगठन निजी क्षेत्र का हिस्सा होते हैं।

निजी क्षेत्र के उद्योग किसे कहते हैं

जो भी आप भारत की बड़ी बड़ी कंपनिया का नाम सुनते हैं। वह सब अधिकत प्राइवेट कंपनी होती हैं। जिसे निजी क्षेत्र के उद्योग कहा जाता हैं।

  • भारती एयरटेल लिमिटेड (Bharti Airtel Limited)
  • एचडीएफसी बैंक लिमिटेड (HDFC Bank Limited)
  • आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड (ICICI Bank Limited)
  • हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड (Hindustan Unilever Limited)
  • रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (Reliance Industries Limited)
  • टाटा मोटर्स लिमिटेड (Tata Motors Limited)
निजी क्षेत्र के उद्योग किसे कहते हैं - टाटा मोटर्स लिमिटेड Tata Motors Limited

निजी क्षेत्र की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं - 

  1. इस क्षेत्र में सम्पत्तियों पर निजी व्यक्तियों का अधिकार होता है।
  2. निजी क्षेत्र में उत्पादन का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है।
  3. निजी क्षेत्र में प्रत्येक व्यक्ति को आर्थिक स्वतन्त्रता होती है।
  4. निजी क्षेत्र में अधिक कार्य की स्वतन्त्रता होने के कारण पूर्ण स्पर्द्धा की स्थिति पायी जाती है।
  5. निजी क्षेत्र में राज्य का हस्तक्षेप नहीं होता है।

भारत में निजी क्षेत्र का विकास

भारत में निजी क्षेत्र का विकास 1833 में हुआ जब ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने एकाधिकारिक व्यापारिक कम्पनी के रूप में कार्य करना बन्द कर दिया। 1833 के चार्टर्ड अधिनियम ने भारत में प्रबंध अभिकर्ता प्रणाली (managing agent system) की शुरूआत के लिए मार्ग प्रशस्त किया। भारत के नियोजित आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्र को अधिक महत्व दिया गया है फिर भी निजी क्षेत्र ने इसमें पहत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के समय देश में अधिकांश उद्योग निजी स्वामित्व में ही थे किन्तु 1948 और 1956 की औद्योगिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र को बड़े पैमाने पर सहाय प्रदान किया। फिर भी निजी क्षेत्र ने अपना विकास जारी रखा हैं।

1991 के बाद सरकार ने फिर से निजी क्षेत्र को अर्थव्यवस्था में मुख्य भूमिका प्रदान करने का निर्णय किया। इसी उद्देश्य से नई औद्योगिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र के लिए सुरक्षित क्षेत्रों की संख्या में कमी आ गई। निजी उद्यमियों को प्रोत्साहित करने हेतु अनेक छूटें दी गई हैं। और ऐसी उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही निजी क्षेत्र अपना विस्तार करने में सफल होगा।

भारत में निजी क्षेत्र की संरचना

भारत में निजी क्षेत्र के उद्योगों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है -

  1. व्यक्तिगत उत्पादक इकाइयाँ - individual production units
  2. छोटे आकार की इकाइयाँ - Small Size Units
  3. बड़े आकार की इकाइयाँ - oversized units

व्यक्तिगत और छोटे आकर की इकाइयों की संख्या बड़े आकर की इकाइयों की संख्या से कहीं अधिक है लेकिन निजी क्षेत्र में बड़े आकार के उद्योग ही महत्वपूर्ण हैं। वर्तमान में औद्योगिक इकाइयाँ जिनमें 35 लाख रुपये से अधिक मूल्य की पूंजी का निवेश किया गया है। कुल औद्योगिक इकाइयों का केवल 6.3% हैं। जबकि औद्योगिक क्षेत्र द्वारा प्रदान किये जाने वाले कुल रोजगार में इनका प्रतिशत 60.6% हैं। 

निजी क्षेत्र की उपलब्धियाँ

भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में निजी क्षेत्र ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। निजी क्षेत्र की कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ इस प्रकार हैं - 

बचतों में योगदान - विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में निजी क्षेत्र की बचतों में निरन्तर वृद्धि हुई है। प्रथम पंचवर्षीय योजना में निजी क्षेत्र की कुल बचत 687 करोड़ रुपय था। 1995-96 में निजी क्षेत्र का सकल घरेलू बचतों में योगदान 45,336 करोड़ रुपये था।

पूँजी निर्माण - निजी क्षेत्र के अन्तर्गत पूँजी निर्माण में भी पर्याप्त वृद्धि हुई है। सन् 1950-51 में घरेलू क्षेत्र का सकल पूंजी निर्माण में योगदान कुल राष्ट्रीय उत्पादन का 6-9 प्रतिशत था जो 1995-96 में बढ़कर 16.3 प्रतिशत हो गया।

रोजगार सृजन - निजी क्षेत्र के उन गैर-कृषि व्यवसायों की संख्या जो कि 10 से अधिक व्यक्तियों को रोजगार प्रदान करते है। वर्ष 1996 में बढ़कर 80-59 लाख हो गई। यह रोजगार का लगभग 30 प्रतिशत है।

छोटी इकाइयों का विस्तार - बड़े उद्योगों के अलावा ऐसी छोटी-छोटी इकाइयाँ हैं। जो उत्पादन, विकेन्द्रीकरण और निर्यात के मामलों में बहुत योगदान करती रही हैं। कुल पंजीकृत कारखानों में छोटे पैमाने के उद्योगों की संख्या 90 प्रतिशत थी और विनिर्माण क्षेत्र के कुल उत्पादन का 40 प्रतिशत भाग इन्हीं की देन है।

परिसम्पत्तियों की वृद्धि - व्यावसायिक परिसम्पत्तियों को उनके आकार एवं वितीय क्षमता का अच्छा सूचक माना जाता है। वर्ष 1963-64 में देश के 20 बड़े व्यावसाय की कुल परिसम्पत्तियों का मूल्य 1,326 करोड़ रुपये था जो सन् 1996 में बढ़कर 1,08,668 करोड़ रुपये हो गया।

निजी क्षेत्र की सीमाएँ

यद्यपि निजी क्षेत्र का देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण स्थान है फिर भी इसमें कुछ दोष पाये जाते हैं - 

(1) आर्थिक सत्ता का केन्द्रीकरण - निजी क्षेत्र में कुछ बड़े उद्योगपतियों के हाथों में आर्थिक शक्ति का केन्द्रीकरण हो जाता है और इस आर्थिक केन्द्रीकरण के कारण राजनीतिक सत्ता भी प्रभावित हुई है।

(2) वर्ग संघर्ष - निजी क्षेत्र में समाज दो वर्गों में विभक्त हो जाता है - पूँजीपति और श्रमिक वर्ग। दोनों वर्ग अपने हितों की पूर्ति चाहते हैं इसलिये निरन्तर वर्ग-संघर्ष बना रहता है।

(3) आर्थिक साधनों का अपव्यय - प्रतियोगिता निजी क्षेत्र की प्रमुख विशेषता है। निजी क्षेत्र में प्रत्येक उत्पादक अपने प्रतिद्वन्द्वी को बाजार से बाहर करने के लिये विज्ञापन एवं प्रचार पर काफी अपव्यय करता है।

(4) आर्थिक अस्थिरता - आर्थिक अस्थिरता का प्रमुख कारण माँग और पूर्ति का अपूर्ण समायोजन है। निजी क्षेत्र में आवश्यकतानुसार उत्पादन नहीं किया जाता है, बल्कि लाभ की दृष्टि से किया जाता है। फलस्वरूप निजी क्षेत्र में समय-समय पर अधिक उत्पादन या न्यून उत्पादन की समस्याएँ बनी रहती हैं।

(5) अधिक लाभ की भावना - निजी क्षेत्र अधिक लाभ की भावना से कार्य करते हैं। और ये अनुचित व्यापार नीतियों का अनुसरण करते हुए केवल वस्तुओं का उत्पादन करते हैं जिनमें लाभ की दर अधिक होने की सम्भावना होती है। इससे असन्तुलित क्षेत्रीय विकास होता है।

(6) सामाजिक कल्याण की उपेक्षा - निजी क्षेत्र में उत्पादन केवल व्यक्तिगत लाभ की दृष्टि से किया जाता है, उत्पादक सामाजिक कल्याण को ध्यान में नहीं रखता है। 

निजी क्षेत्र मे सुधार

निजी क्षेत्र को प्रभावशाली बनाने के लिए सरकार ने अनेक कदम उठाये हैं

निजी क्षेत्र का विस्तार - इसके लिए अनेक उपाय किये गये हैं। एक तो सार्वजनिक क्षेत्र के लिए अभी तक सुरक्षित 17 उद्योगों को घटाकर 5 कर दिया गया है। शेष 12 उद्योगों को निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया हैं।

प्रतियोगिता को बढ़ावा - अर्थव्यवस्था को अधिक बाजार योग्य बनाने के उद्देश्य से सरकार ने निजी क्षेत्र को कार्य-संचालन के सम्बन्ध में पर्याप्त छूट देने की व्यवस्था की है।

विश्वव्यापीकरण - निजी क्षेत्र के कार्यकलापों को विश्वव्यापक बनाने के उद्देश्य से भी कई परिवर्तन लाए गए हैं। अर्थात् घरेलू अर्थव्यवस्था को विश्व अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ना जिससे यह बाहर की ओर उन्मुख हो सके। इससे निजी क्षेत्र का विस्तार होगा।

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