प्राचीनकाल से भारत में वर्ण व्यवस्था प्रथा विद्यमान है। इस प्रथा के अनुसार समाज को चार वर्णों में उनके व्यवसाय के अनुसार बाँटा गया था – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र।
प्रारंभ में यह जाति प्रथा जन्म से लागू न होकर कर्म से निर्धारित होती थी और बहुत लचीली प्रथा थी। उनमें परस्पर रक्त सम्बन्ध, खान-पान तथा व्यवहार होता था। किन्तु जैसे-जैसे समय व्यतीत होता गया व्यक्ति का व्यवसाय भी प्राय: पैतृक होता गया तथा आगे चलकर जाति का निर्धारण भी जन्म से होने लगा।
हजारों वर्षों के अन्तराल में यह जाति प्रथा इतनी कठोर हो गयी कि सबमें आपसी खानपान व व्यवहार भी प्रतिबन्धित हो गया। सभी वर्ण कई विभागों में विभाजित हो गयी। धीरे धीरे ये विभिन्न जातियाँ कहलाने लगीं।
अनुसूचित जनजाति किसे कहते हैं
भारत में अनुसूचित जनजाति उन प्रजातियों को कहा जाता है। जिनके पूर्वज प्राचीन काल में वन- प्रांतो और पहाड़ी स्थानों में रहते थे। आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि से ये जातियाँ पिछड़ती चली गयीं थी। इस जाति प्रथा ने भारत की प्रगति को अवरुद्ध कर दिया था।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इन समस्त जातियों के लोगों को उच्च जातियों के समकक्ष लाने हेतु प्रयास किया गया और इन्हें विशेष सुविधाएँ देने की व्यवस्था की गयी। इस प्रकार सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से पिछड़ी जातियाँ आज, अनुसूचित जनजाति कहलाती हैं।
अनुसूचित जाति के संकेन्द्रण की प्रवृत्ति - ये लोग कृषि व इससे सम्बन्धित कार्यों में संलग्न होते हैं। अतः इनका संकेन्द्रण जलोढ़ मैदानों में सर्वाधिक है। जैसे - उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, बिहार व पश्चिम बंगाल में इनकी संख्या अधिक हैं। नगरों की अपेक्षा इनकी जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक निवास करती है।
अनूसूचित जातियों का प्रादेशिक वितरण - राज्य स्तर पर अनुसूचित जातियों का सर्वाधिक संकेन्द्रण उत्तरप्रदेश तथा बिहार में हुआ है, किन्तु जिला स्तर पर सर्वाधिक संकेन्द्रण बिहार के कूच तथा पश्चिमी बंगाल के जलपाईगुड़ी जिलों में है। इन दोनों जिलों में कुल जनसंख्या का 75% भाग अनुसूचित जाति रहती है।
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर तथा राजस्थान के गंगा नगर जिले में क्रमशः तृतीय व चतुर्थ स्थान रखते हैं, जहाँ क्रमशः जहाँ 32.6% व 29% जनसंख्या अनुसूचित जाति के अंतर्गत आती है। पाँचवाँ स्थान जम्मू कश्मीर के जम्मू जिले का है। जहाँ 28% जनसंख्या अनुसूचित जाति की है।
अनुसूचित जाति का मध्यम स्तर का संकेन्द्रण पंजाब, गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा तथा पश्चिम बंगाल में पाया जाता है। इस जनसंख्या का निम्नतम संकेन्द्रण हिमाचल प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर, असम, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल आदि राज्यों में हुआ है।
मणिपुर, मेघालय, नागालैण्ड, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और केन्द्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप में अनुसूचित जाति की जनसंख्या बहुत ही कम है। यहाँ अनुसूचित जन जातियों का बाहुल्य है।
सन् 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में अनुसूचित जातियों की जनसंख्या लगभग 16.16 करोड़ के जनसंख्या की 16-20 प्रतिशत थी। जो देश की कुल संवैधानिक संरक्षण, सामाजिक परिवर्तनों तथा आर्थिक प्रगति के कारण अनुसूचित जातियों के लोग प्रगति के पथ पर अग्रसर हो चुके हैं।
अनुसूचित जनजातियों की विशेषताएँ
- ये जनजातियाँ एक भौगोलिक प्रदेश में, सभ्य जगत से दूर, एकाकी जीवन व्यतीत करती हैं।
- ये लोग पुराने ढंग की आर्थिक क्रियाओं से जीवन-यापन करते हैं।
- अधिकांशतः जनजातियाँ मांसाहारी होती हैं।
- अधिक आन्तरिक भागों में निवास करने वाली जातियाँ प्रायः नग्न व अर्द्ध नग्न अवस्था में रहती हैं।
- ये परम्परागत हिन्दू जाति के संगठन क्रम में सम्मिलित नहीं हैं।
- सांस्कृतिक दृष्टि से ये एक जनजातीय भाषा बोलते हैं।
- इन जनजातियों के अपने अलग सामाजिक विश्वास, रीति-रिवाज, नीति, आचार-विचार होते हैं।
अनुसूचित जनजातियों का वितरण
भारत में जनजातियों का संकेन्द्रण दो प्राकृतिक कारकों के आधार पर हुआ है। दुर्गम वनों तथा पहाड़ी प्रदेशों में सामान्य पहुँच बहुत कम थी। इसलिए ये जनजातियाँ अपनी विशिष्ट पहचान बनाये रख सकी हैं। इन जनजातियों में संकेन्द्रण के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं।
उत्तरी व उत्तरी-पूर्वी प्रदेश - इसे सघन जनजाति प्रदेश कहा जाता है। जनजातियों का संकेन्द्रण इस प्रदेश में सबसे अधिक हुआ है । इसके अन्तर्गत असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नागालैण्ड, मिजोरम, त्रिपुरा व मणिपुर राज्य सम्मिलित हैं । इन राज्यों की कुल जनसंख्या में जनजातियों का प्रतिशत 80 से अधिक है।
इस ऊँचे प्रतिशत का कारण कृषि योग्य भूमि का अभाव, पहाड़ी व वनाच्छादित भूमि की अधिकता एवं जनजातियों की मान्यताएँ हैं । इस प्रदेश में गारो, उफला, अगामी, नागा, लुशाई, मिकिर प्रमुख जनजातियाँ हैं। इस प्रदेश की जनजातियाँ मुख्यतः मंगोलॉयड प्रजाति के अवशेष हैं। उत्तरी भारत में पूर्वी कश्मीर से लेकर हिमाचल प्रदेश होते हुए उत्तर प्रदेश के तराई भाग तक जनजातियाँ फैली हैं।
मध्यवर्ती प्रदेश - इस क्षेत्र के अन्तर्गत मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, आन्ध्र प्रदेश, दक्षिणी राजस्थान, दक्षिणी उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार, झारखंड और उड़ीसा राज्य हैं। कुल जनजातियों की जनसंख्या का 81-05 प्रतिशत इसी प्रदेश में है। छत्तीसगढ़ में लगभग 75 लाख आदिवासी निवास करते हैं। जो कि प्रदेश की कुल जनसंख्या का लगभग 32-40% है।
यहाँ जनजातिय सामान्यतः पहाड़ी तथा वनांचलों में निवास करते हैं। इनमें भी विविधता है। भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के जनजातियों को भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। प्रमुख जनजातियों में अगारिया, असुर, बैगा, भतरा, मैना, भुजिया, बिंझवार, बिरहोड़, बिरजिया, धुरवाँ, धनवार, गदखा, गोंड़, हल्बा, कमार, कँवर, खैरवार, खड़ियाँ।
दक्षिणी प्रदेश - इसके अन्तर्गत आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु राज्य आते हैं। इस प्रदेश में कुल जनजातियों का 6-49% है। ये भारत की प्राचीनतम जनजातियाँ हैं। यूराली, कड्डार, पनियान और इरूला जनजातियाँ निग्रीटो प्रजाति के अंश हैं। ये भारत की प्राचीनतम जनजातियाँ हैं। यूराली, कड्डार, पनियान और इरूला जनजातियाँ निग्रीटो प्रजाति के अंश हैं।
अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या
सन् 1961 में भारत में जनजातियों की जनसंख्या 3 करोड़ के लगभग थी । यह बढ़कर सन् 2001 में 8-43 करोड़ हो गयी। यह देश की कुल जनसंख्या का 8.02 प्रतिशत है। संख्या की दृष्टि से सबसे अधिक महत्वपूर्ण जनजातियाँ गोंड़, भील और सन्थाल हैं। प्रत्येक जनजातियों की संख्या 30 लाख से अधिक है। भारत में लगभग 354 प्रकार के समुदाय अनुसूचित जनजातियों में शामिल हैं।
जनगणना रिपोर्टों के आधार पर भारत में जनजातियों की जनसंख्या कुल भारत की जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ बढ़ती रही है, जो निम्नलिखित तालिका से स्पष्ट है। अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या वृद्धि दर शेष जनसंख्या की वृद्धि दर से अधिक रही है। कुछ और अन्य जनजातियों को अनुसूचित जनजाति की सूची में जोड़ा गया हैं। जनजातीय जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि दर शेष जनसंख्या की प्राकृतिक दर से उच्च है।