रूसो की सामान्य इच्छा सिद्धांत की व्याख्या कीजिए

सामान्य इच्छा का सिद्धान्त रूसो की सबसे बड़ी देन है। इस सिद्धान्त ने रूसो के भावों, दर्शनों को प्रेरित किया है। यह सिद्धान्त इतना सजीव है कि परस्पर विरोधी दर्शनों ने इससे समान रूपों में निष्कर्ष निकाले हैं, किन्तु हम इतना अवश्य कह सकते हैं कि आधुनिक आदर्शवाद इस सिद्धान्त से बहुत हद तक प्रभावित है।

इस सिद्धान्त को समझने के लिए हम मनुष्य की व्यक्तिगत इच्छा से चलते हैं। मनुष्य की इच्छाएँ दो प्रकार की होती हैं- एक तो भावना से संचालित होती हैं और दूसरी विवेक से।

एक मनुष्य कोई कार्य उत्तेजना के वश करता है और अन्य कार्य विवेक से, बुद्धि से, तर्क से करता है। ऐसा कैसे होता है कि मनुष्य तो वही है, पर कार्य करने का ढंग अलग-अलग है।

इच्छा के प्रकार - रूसो कहता है कि मनुष्य में दो प्रकार की प्रवृत्तियाँ होती हैं- उदात्त तथा निम्न । इन्हीं दो प्रकार की प्रवृत्तियों से मनुष्य की दो प्रकार की इच्छाएँ संचालित होती हैं -

1. वास्तविक इच्छाएँ - वह इच्छा जो विवेकहीन, स्वार्थी, तुच्छ, क्षणिक, अदूरदर्शी, संकुचित, संघर्ष मूलक एवं अशिष्ट है। उसे हम उत्तेजक इच्छा कह सकते हैं, जिसे रूसो होती है, यह भावावेश है ।Actual will' के नाम से पुकारता है।

2. आदर्श इच्छा - वह इच्छा जो विवेकपूर्ण, सुसंस्कृत, स्थायी, कल्याणकारी, स्वार्थरहित है, उसे हम आदर्श इच्छा कह सकते हैं, जिसे रूसो ‘Real will' के नाम से पुकारता है। यह आदर्श इच्छा है और मनुष्य की उदात्त प्रवृत्ति से प्रभावित है। 

मनुष्य की यही आदर्श इच्छा उसे सार्वजनिक कल्याण के लिए प्रेरित करती है। इसीलिए वह इच्छा जो मनुष्य की आदर्श इच्छा है, वास्तव में सामान्य इच्छा का रूप ले लेती है। इच्छा सार्वजनिक कल्याण का प्रगतिकरण करती है।

सार्वजनिक चेतना ही सामान्य इच्छा है। समाज में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति की दो इच्छाओं में से वही इच्छा को अभिव्यक्त करती है जो उदात्त भावनाओं से प्रेरित है। समाज में रहने वाले व्यक्तियों की आदर्श इच्छाओं का संचालित रूप ही सामान्य इच्छा है।

यहाँ स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि समाज में रहने वाले व्यक्तियों की सार्वजनिक इच्छा जिसे हम राजनीतिशास्त्र की भाषा में बहुमत के नाम से पुकारते हैं, उसे ही सामान्य इच्छा कदापि नहीं कहा जा सकता, क्योंकि बहुमत में सार्वजनिक इच्छा होती हैं और सार्वजनिक इच्छा में व्यक्तियों की केवल आदर्श इच्छा नहीं, उत्तेजक इच्छा भी सम्मिलित रहती है।

अर्थात् उसमें समाज में रहने वाले अधिकतर व्यक्तियों की मानवीय इच्छा सम्मिलित है। हाँ, यह बात दूसरी है कि किसी समय बहुमत लोगों की केवल आदर्श इच्छा ही का संचालित रूप होने के कारण सामान्य इच्छा को अभिव्यक्त करे।

सामान्य इच्छा के गुण

1. सामान्य इच्छा - 

(क) निरंकुश है, क्योंकि इसकी शक्ति सर्वोपरि है। इस पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध या अंकुश नहीं लगाया जा सकता। 

(ख) अविभाज्य है, क्योंकि वह अपने में सम्पूर्ण है और इसे विभाज्य होने से इसका स्वरूप नष्ट हो जाता है।

(ग) अचूक है, क्योंकि सनातन सत्य पर आधारित होने के कारण इसका स्वरूप बदलता नहीं है।

(घ) अचूक है, क्योंकि यह सर्वदा ठीक रहती है, इससे कभी भूल नहीं हो सकती । 

(ङ) निष्पक्ष है, क्योंकि इसका उद्देश्य लोकहित है, इसलिए इसके द्वारा पक्षपात सम्भव नहीं।

(च) अहस्तान्तरणीय है, क्योंकि शक्ति हस्तान्तरण का स्वयं माध्यम है। 

2. सामान्य इच्छा रूसो के अनुसार, सरलता से खोजी जा सकती है।

3. रूसो यह मानता है कि यद्यपि सामान्य इच्छा निरपेक्ष है फिर भी अव्यावहारिकता में उसका सापेक्ष रूप हम सार्वजनिक इच्छा में पाते हैं। इसलिए 'बहुमत' व्यावहारिक रूप से सापेक्ष सामान्य इच्छा है।

रूसो ने सामान्य इच्छा को निम्नानुसार प्रतिबन्धित भी किया है

1. वह प्रत्यक्ष लोकतन्त्र का समर्थक है और प्रतिनिधि मूलक शासन को पाखण्ड एवं मिथ्या की संज्ञा देता था। वह कहता है कि ब्रिटेन में लोकतन्त्र केवल प्रदर्शनी के लिए ही होता है, क्योंकि वहाँ की जनता संसद द्वारा शासित है।

यह केवल चुनाव के समय ही स्वतन्त्रता अनुभव करती है। प्रत्यक्ष लोकतन्त्र के प्रति आस्थावान होने के कारण वह किसी संस्था को शासन संचालन शक्ति देने के पक्ष में नहीं था ।

2. वह सामान्य इच्छा में पक्षपात की भावना को समाविष्ट किये जाने का विरोधी था, क्योंकि वह जानता था कि लोग स्वार्थ - सिद्ध करने लगेंगे और जिसका परिणाम जनता को भुगतना होगा।

3. सामान्य इच्छा द्वारा संचालित राज्य अथवा समाज में न्यूनतम बल प्रयोग किया जाना चाहिए, लेकिन साथ ही रूसो का यह मत है कि आवश्यकता पड़ने पर वहाँ अधिक-से-अधिक शक्ति एवं बल का प्रयोग कर सकती है।

4. राज्य को वही नियम बनाने चाहिए जो कि अत्यन्त आवश्यक हों। जहाँ तक हो सके उसे निरर्थक नियम बनाने से बचना चाहिए, क्योंकि उसका आधार सामान्य इच्छा है।

सामान्य इच्छा के कार्यों का उल्लेख करते हुए रूसो कहता है कि कम-से-कम कानून बनाना चाहिए। शासक की नियुक्ति एवं उसको भंग करने का कार्य भी उसके द्वारा ही प्रतिपादित होगा। एक स्थान पर उसने यह भी संकेत किया है कि उसके परिणामस्वरूप क्रान्ति भी हो सकती है।

सामान्य इच्छा का निर्माण - सामान्य इच्छा का निर्माण दो तत्त्वों से मिलकर बना है

1. सामान्य व्यक्तियों की इच्छा,

2. सामान्य हित पर आधारित इच्छा।

इन दोनों में से दूसरा पहले से अधिक महत्त्वपूर्ण है जैसा कि स्वयं रूसो ने कहा है, “मतदाताओं की संख्या से कम तथा उस सामाजिक हित की भावना से अधिक इच्छा सामान्य बनती है, जिसके द्वारा एकता में बँधते हैं।”

रूसो के अनुसार व्यक्तिगत सामान्य इच्छा का निर्माण - रूसो कहता है कि हम की इच्छा से चलते हैं तथा सामान्य इच्छा पर पहुँचते हैं। होता यह है कि व्यक्ति त समस्याओं पर पहले अपने व्यक्तिगत दृष्टिकोण के अनुसार चिन्तन करते हैं, की यथार्थ इच्छा पर आधारित होती है। 

किन्तु जो समाज सभ्य और सुसंस्कृत है तथा जिसकी राजनीतिक चेतना विकसित होती है। उसके सदस्य विवेकपूर्ण हैं। उन व्यक्तियों की स्वार्थी इच्छाएँ समाप्त हो जाती हैं, अन्ततः सामान्य इच्छा का उदय होता है। 

यह सामान्य इच्छा व्यक्तियों की सर्वोत्कृष्ट इच्छा और नागरिकता की भावनाओं का मूर्त रूप होती है, क्योंकि विचार-विमर्श से प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा परिमार्जित, पवित्र और विशाल हो जाती है। यही सामान्य इच्छा समाज में सर्वोच्च और सर्वोत्तम होती है जो सामान्य हित के लिये कार्य करती है।

सामान्य इच्छा की विशेषताएँ - रूसो की सामान्य इच्छा को समझने के लिये उसकी विशेषताओं को समझना आवश्यक है। सामान्य इच्छा की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

1. अखण्डता - सामान्य इच्छा की पहली विशेषता उसकी अखण्डता और एकता है। यह विवेकपूर्ण है, इसमें आत्म-विरोध नहीं होता है। रूसो ने कहा है, "सामान्य इच्छा राष्ट्रीय चरित्र में एकता उत्पन्न करती है और उसे स्थिर रखती है।'

2. स्थायित्व - इसकी दूसरी विशेषता इसका स्थायित्व है, क्योंकि यह संवेगात्मक नहीं है, बल्कि विवेकात्मक है। रूसो के अनुसार, "इसका कभी अन्त नहीं होता। यह कभी भ्रष्ट नहीं होती। यह अनित्य, अपरिवर्तनशील तथा पवित्र होती है।

3. अदेयता - सामान्य इच्छा का एक लक्षण है अदेयता जिसका तात्पर्य है कि इसे किन्हीं व्यक्तियों को हस्तान्तरित नहीं किया जा सकता हैं।

4. अविच्छेदता - इसकी विशेषता यह है कि रूसो प्रभुता को सम्पूर्ण सामान्य इच्छा में निहित मानता है। उसे अलग नहीं किया जा सकता जिस प्रकार शरीर से प्राणों को अलग नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार प्रभुसत्ता को सामान्य इच्छा से अलग नहीं किया जा सकता।

5. सर्वोच्चतम एवं निरंकुशता - सामान्य इच्छा की एक अन्य विशेषता उसका सर्वोच्च एवं निरंकुश होना है। इस पर दैवीय, प्राकृतिक और परम्परागत नियमों का कोई प्रतिबन्ध नहीं होता।

6. न्यायोचितता-सामान्य इच्छा सदैव न्यायोचित होती है, क्योंकि यह हमेशा सामाजिक हित को ध्यान में रखकर निर्धारित की जाती है

7. लोक-कल्याणकारी - सामान्य इच्छा का उद्देश्य सम्पूर्ण समाज का हित करना होता है। यह सभी व्यक्तियों की आदर्श इच्छाओं का निचोड़ है।

8. जनतन्त्र का आधार - सामान्य इच्छा राज्य का आधार है। अतः राज्य का संचालन शक्ति से नहीं बल्कि जनता की सहमति से होना चाहिये । अतः सामान्यतः इच्छा का आधार जनतन्त्रीय है।

सामान्य इच्छा और सबकी इच्छा में अन्तर

सामान्य इच्छा और 'सबकी इच्छा'  में भी अन्तर है। सामान्य इच्छा का अर्थ कभी भी सबकी इच्छा से नहीं है। सबकी इच्छा वैयक्तिक हितों का विचार करती है और विशेष इच्छाओं का योग है। सबकी इच्छा सभी लोगों की स्वार्थमयी इच्छा भी हो सकती है, 

अतः वह समाज के लिए हानिप्रद भी हो सकती है। परन्तु सामान्य इच्छा, सामान्य हित से ही प्रेरित है और यह एक व्यक्ति की इच्छा भी हो सकती है, अल्पमत की भी, बहुमत की भी और सबकी भी हो सकती है, बशर्ते कि उसमें सार्वजनिक कल्याण निहित हो।

सामान्य इच्छा सिद्धान्त की आलोचना

1. आलोचकों के अनुसार सामान्य इच्छा का सिद्धान्त केवल एक कोमल एवं कल्पना मात्र है। व्यवहार में इसका मिलना कठिन है। 

2. मानवीय इच्छा का दो भागों मधुर में बाँटना, वास्तविक इच्छा, आदर्श इच्छा सम्भव है। यह मानवीय इच्छा का कृत्रिम और अव्यावहारिक विभाजन है। 

3. रूसो की सामान्य इच्छा निरंकुश शासन को जन्म देती है। रूसो की सामान्य इच्छा हॉब्स का सिर कटा लेवियाथन है। चूँकि हॉब्स का शासन भी निरंकुश था और रूसो की सामान्य इच्छा द्वारा शासक भी निरंकुश है। 

4. रूसो कई स्थानों पर 'सामान्य इच्छा' और 'बहुमत की इच्छा' में अन्तर बताता है और स्वयं यह भी स्वीकार करता है कि आधुनिक युग में बहुमत पर प्रजातन्त्र की सामान्य इच्छा के अनुसार शासन चलाते हैं। 

5. मनुष्य का कौन-सा पक्ष आदर्श इच्छा से प्रभावित है इसे निर्धारण करने का कोई मापदण्ड नहीं है। 

6. मनुष्य का कौन-सा पक्ष आदर्श और समाज की सामान्य इच्छा में एकरूपता नहीं आ सकती, क्योंकि समाज केवल व्यक्तियों का सम्मिश्रण मात्र है, अपने में पूर्ण एक संस्था है। 

7. रूसो सामान्य इच्छा को सबकी इच्छा का प्रतिनिधि रूप देता है। आज के युग में सबकी इच्छाएँ समान नहीं होतीं। वर्तमान युग, विज्ञान का युग है, इसमें रेडियो, टेलीविजन, समाचार-पत्र, प्रेस और राजनीतिक दलों के विकास इत्यादि के द्वारा सामान्य इच्छा को जाना जा सकता है।

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