गैर परंपरागत ऊर्जा संसाधन किसे कहते हैं?

ऊर्जा संसाधन पृथ्वी पर उपलब्ध संसाधनों से ऊर्जा प्राप्त करने वाले पदार्थ को कहा जाता है। ऊर्जा संसाधन दो प्रकार के होते हैं परंपरागत और गैर परंपरागत ऊर्जा के संसाधन। इस पोस्ट मे हम गैर परंपरागत ऊर्जा संसाधन किसे कहते हैं। इसके बारे मे जानने वाले हैं। 

परंपरागत ऊर्जा संसाधन किसे कहते हैं

कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि का प्रयोग पिछली कुछ शताब्दियों से व्यापक रूप में होता आ रहा है। सन् 1990 में कोयले का भाग 90 प्रतिशत, लकड़ी ऊर्जा का 8 प्रतिशत और पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस का 1 प्रतिशत व अन्य का 1 प्रतिशत था।

सन् 1977 तक यह प्रयोग बदला कोयला 20% पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस 71% तथा अन्य 9% हो गया, परन्तु अति शोषण इन ऊर्जा संसाधनों की कमी का अनुभव किया जाने लगा क्योंकि ये सभी संसाधन एक ही बार प्रयोग में आने पर नष्ट हो जाते हैं।

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गैर परंपरागत ऊर्जा संसाधन किसे कहते हैं

इन संसाधनों के भण्डार एक निश्चित मात्रा में ही होंगे। अतः वैज्ञानिकों ने अन्य ऊर्जा संसाधनों की खोज प्रारम्भ कर दी हैं। आज जिन नवीन ऊर्जा संसाधनों को विकसित किया जा रहा है। उसे गैर परंपरागत ऊर्जा संसाधन कहते हैं। जिसकी जानकारी नीचे दी गई हैं -

1. बायो गैस - जैवीय पदार्थों जैसेगोबर, मलमूत्र, कूड़ा-करकट, बेकार हुई वनस्पति आदि को वायुमण्डल से अलग रखकर सड़ाया जाता है। तो उनसे अनेक गैसों की उत्पत्ति होती है। इन गैसों में मिथेन गैस की प्रधानता होती है। इस गैस का उपयोग रसोईघर में भोजन पकाने के ईंधन के रूप में तथा प्रकाश करने हेतु किया जाता है। इस संसाधन का उपयोग कृषि प्रधान तथा पशु-पालन प्रधान देशों के लिए बहुत लाभकारी है। भारत में इसका प्रयोग बढ़ रहा है।

गोबर गैस या बायो गैस यंत्र लगाने के लिए सरकारी सहायता प्रदान की जा रही है। इससे सस्ता ईंधन सुलभ हुआ है। गोबर गैस संयंत्र की स्थापना व्यक्तिगत, सामुदायिक तथा ग्राम स्तर पर की जा रही है। बड़े नगरों के मल जल से भी बायो गैस संयंत्र चलाए जा सकते हैं।

2. ज्वारीय ऊर्जा – यह ऊर्जा का सस्ता एवं अक्षय साधन है। भारत में कच्छ तथा खम्भात की खाड़ियाँ ज्वारीय ऊर्जा से बिजली बनाने के लिए आदर्श स्थान हैं। यहाँ की सकरी खाड़ियों में बहुत तेजी से ज्वार का पानी ऊपर चढ़ता है।

3. ऊर्जा के लिए वृक्षारोपण- बंजर तथा अपरदित भूमि को रोकने एवं ऐसी भूमि के उपयोग के लिए शीघ्र बढ़ने वाले एवं बहुत अधिक ताप जनक गुण वाले वृक्षों तथा झाड़ियों के रोपण किए जा रहे हैं। इनसे जलाऊ लकड़ी, काठकोयला, चारा और शक्ति प्राप्त की जाती है। इससे ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार को प्रोत्साहन मिला है।

8000 हैक्टेयर भूमि में ऊर्जा के लिए किये गये वृक्षारोपण के वृक्षों एवं झाड़ियों का गैसीकरण करके सन् 1987 में 1.5 मेगावाट बिजली बनायी गयी।

4. शहरी कचरे से ऊर्जा- शहरों में प्रतिदिन निकलने वाले ढेरों कचरों से भी ऊर्जा प्राप्त किया जा सकता है। दिल्ली में शहर के ठोस पदार्थों के रूप में कूड़े कचरे से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए एक संयंत्र परीक्षण के तौर पर कार्य कर रहा है। इससे प्रतिवर्ष 4 मेगावाट ऊर्जा का उत्पादन होता है। इसकी सफलता को देखते हुई नगरों में ऐसे ऊर्जा संयंत्र लगाए जा रहे हैं।

5. गन्ने की खोई से चलने वाले बिजली घर - भारत में गन्ने के रस से चीनी बनायी जाती है। शेष बची खोई का प्रयोग बिजली बनाने में किया जा सकता है। एक अनुमान के अनुसार गन्ने की के मौसम में कारखानों में 2000 मेगावाट बिजली बनायी जा सकती है।

एक कारखाना 10 मेगावाट बिजली बना सकता है। इसमें से 4 मेगावाट बिजली का उपयोग कारखाने की निजी आवश्यकता को पूरा करने के लिए हो सकता है। शेष 6 मेगावाट बिजली को स्थानीय ग्रिड में भेजकर खेतों की सिंचाई की जा सकती है।

6. निर्धूम चूल्हा – हमारे देश में खाना बनाने के लिए प्रयुक्त चूल्हे में बहुत सा-ईंधन बर्बाद हो जाता है। इस बर्बादी से बचने के लिए निर्धूम चूल्हों का उपयोग शुरू किया गया है। इन चूल्हों से 20 से 30 प्रतिशत तक जलाऊ लकड़ी की बचत होती है । इन चूल्हों के उपयोग से प्रतिवर्ष लगभग 20 लाख टन जलाऊ लकड़ी बच जाती है। साथ ही धुएँ की जलन से आँखों की रक्षा हो जाती है।

7. पवन-ऊर्जा - पवन का ऊर्जा के रूप में प्रयोग बहुत प्राचीन काल से व्यापारिक नौकाओं तथा यात्री नौकाओं को चलाने के लिए किया जाता था। आगे चलकर इन नौकाओं का स्थान विशाल शक्ति-चालित जलयानों ने ले लिया। नीदरलैण्ड में पवन चक्कियों का विकास हुआ। अनेक देशों में पवन को शक्ति का संसाधन के रूप में प्रयोग करने के प्रयास किये जा रहे हैं।

भारत में तमिलनाडु, महाराष्ट्र, उड़ीसा और गुजरात राज्य पवन ऊर्जा के विकास के लिये उपयुक्त है। ऐसा अनुमान है कि पवन का उपयोग करके 2000 मेगावाट बिजली बनायी जा सकती है।

मार्च, सन् 1987 तक 1750 पवन चक्कियाँ लगायी जा चुकी थीं। 1953 मेगावाट बिजली की संस्थापित उत्पादन क्षमता वाले पवन क्षेत्र भी कार्य कर रहे हैं। ये अब तक 5 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन कर चुके हैं।

8. सौर ऊर्जा - पृथ्वी पर प्राप्त होने वाला लगभग समस्त ताप सूर्य से प्राप्त होता है। इसी ताप को वैज्ञानिक विभिन्न यन्त्रों की सहायता से एकत्रित एवं संचित कर ऊर्जा संसाधन के रूप में विकसित कर चुके हैं। सौर ऊर्जा भी असमाप्य संसाधन है। सौर ऊर्जा की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

  1. यह असमाप्य संसाधन है।
  2. इसकी मात्रा असीमित है।
  3. यह ऊर्जा स्रोत प्रदूषण रहित है तथा इससे वायु व जल भी प्रदूषित नहीं होते हैं ।
  4. सौर ऊर्जा के प्रयोग से ध्वनि प्रदूषण भी नहीं होता है।
  5. सौर ऊर्जा के प्रयोग से अन्य समाप्य ऊर्जा संसाधनों की बचत की जा सकती है ।
  6. ताप एकत्रीकरण तथा संचयीकरण यन्त्रों की लागत अधिक होती है।

अतः प्रारम्भ काल में निर्धन देश इसका प्रयोग नहीं कर पायेंगे। भारत में नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी ने सोलर कुकर का आविष्कार किया है । इनसे बिना किसी खर्च के भोजन बनाया जा सकता है। अप्रैल सन् 1987 तक देश में 70,000 से अधिक सौर चूल्हे उपयोग में लाए जा रहे हैं।

आजकल खाना पकाने, पानी गर्म करने, पानी के खारेपन को दूर करने अंतरिक्ष ताप तथा फसलों को सुखाने में सौर ऊर्जा का सफलतापूर्वक उपयोग किया जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों के लिए छोटे और मध्यम दर्जे के सौर-बिजली घरों की योजना बनायी जा रही है।

9. भू-तापीय ऊर्जा - पृथ्वी के गर्भ में अत्यधिक मात्रा में तापमान पाया जाता है। ज्वालामुखी उद्गारों से निकलने वाला लावा, वाष्प, गर्म जल आदि इसके प्रमाण हैं। अतः संसार के जिन भागों में भूगर्भ से निकलने वाले गर्म जल तथा भाप का ऊर्जा के रूप में उपयोग किया जाता है तो उसे भू-तापीय ऊर्जा कहते हैं।

भारत इस साधन में संपन्न नहीं है फिर भी हिमाचल प्रदेश में स्थित मणिकर्म के गर्म जल स्रोत की ऊर्जा का उपयोग करने का प्रयास चल रहा है। इस प्रकार की ऊर्जा का उपयोग शीतघरों को चलाने में किया जा सकता है।

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