मत्स्य संसाधन क्या हैं?

मत्स्य का अर्थ मछली से हैं। मछलियों की कई प्रजातियाँ मनुष्यों द्वारा पकड़ी जाती हैं और दुनिया भर के लगभग सभी क्षेत्रों में भोजन के रूप में खाई जाती हैं। पूरे मानव इतिहास में मछली प्रोटीन और अन्य पोषक तत्वों का एक महत्वपूर्ण आहार स्रोत है।

मत्स्य संसाधन क्या हैं

मछली मानव का महत्वपूर्ण भोजन है। यद्यपि इस वैज्ञानिक युग में अनेक प्रकार के खाद्य पदार्थों की खोज कर ली गई है, तब भी मानव के भोजन में मछली का विशेष स्थान है। मछली को मत्स्य संसाधन कहा जाता हैं।

भारत के 6100 किमी लम्बी समुद्र तटीय सीमा एवं आन्तरिक भाग में स्थित नदियों, नहरों, झीलों, जलाशयों आदि में मछलियाँ पकड़ने के लिए विभिन्न प्रकार की भौगोलिक दशाएँ पायी जाती हैं।

मत्स्य संसाधन महत्व

भारत में मत्स्य संसाधन के महत्व को निम्नलिखित बिन्दुओं में स्पष्ट किया जा सकता है।

1. देश में तेजी से बढ़ती जनसंख्या की खाद्य समस्या को हल करने की दिशा में मछली का भोजन में उपयोग महत्वपूर्ण रहा है। हरित क्रान्ति से पूर्व हमारे देश की खाद्यान्न समस्या के समाधान में मत्स्य संसाधन का योगदान उल्लेखनीय है। आज देश में मछली का औसत उपभोग 4 कि.ग्रा. प्रति व्यक्ति है।

2. भारत के तटवर्ती तथा आन्तरिक मत्स्य संसाधन क्षेत्र में लाखों लोग मत्स्य उत्पादन कार्य में लगे हुए हैं। अतः इस व्यवसाय ने बेरोजगारी की समस्या को कुछ सीमा तक सुलझाया है। जैसा कि सन् 1984-85 के अनुसार देश में कुल 1200 करोड़ रुपये मूल्य का मत्स्य उत्पादन किया गया था, जो कि कुल राष्ट्रीय आय का 0.8% था।

3. भारत के निर्यात व्यापार में मत्स्य संसाधन का योगदान महत्वपूर्ण है। जहाँ सन् 1961-62 में कुल निर्यात व्यापार का 0-6% भाग ही मत्स्य संसाधन का था, वहीं सन् 1984-85 में यह निर्यात बढ़कर 4-1% हो गया। भारत से श्रीलंका, सिंगापुर, मारीशस, हांगकांग, बर्मा, यूरोप तथा अमेरिका के देशों को मछली एवं उनसे बने सामानों का निर्यात किया जाता है।

उत्पादन एवं वितरण - भारत में मत्स्य उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है। सन् 1951 में उत्पादन 7.52 लाख टन था, जो सन् 2001-2002 में बढ़कर 59.56 लाख टन हो गया। भारत में मछली पकड़ने वाले क्षेत्रों को निम्नलिखित पाँच भागों में बाँटा जा सकता है।

1. समुद्री मछलियों के क्षेत्र - समुद्री मछलियाँ पकड़ने के प्रमुख क्षेत्र तटीय रेखा से अधिकतम 16 कि.मी. की दूरी तक सीमित हैं। इसके प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में गुजरात के तटीय भागों से प्रारम्भ होकर महाशबू, कर्नाटक, केरलतमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा एवं प. बंगाल के तटीय भागों तक हैं।

पश्चिमी समुद्र तटीय क्षेत्रों में कुल समुद्री मछलियों की 75% मछलियाँ पकड़ी जाती हैं जबकि बंगाल की खाड़ी अर्थात् पूर्वी समुद्र तटीय क्षेत्रों में मात्र 25% मछलियाँ ही पकड़ी जाती हैं।

पश्चिमी तट पर स्थित कनारा और मालाबार जिलों के तटीय क्षेत्रों में भारत के कुल समुद्री उत्पादन का लगभग 50% प्राप्त होता है। इन क्षेत्रों में पकड़ी जाने वाली मछलियों में मैकरेल, प्रॉन, सारडाइन, शार्क, हैरिंग, एंकावी, पामफ्रेट, सोल एवं भारतीय सामन आदि प्रमुख हैं।

भारत में समुद्री मछली पकड़ने का कार्य सामयिक है। मानसून काल में वर्षा, तेज हवा इत्यादि कारणों से मछली पकड़ने का कार्य धीमा रहता है।

2. आंतरिक मछलियों के क्षेत्र - देश के भीतरी भागों में नदियों, नहरों, झीलों, जलाशयों, पोखरों, आदि में पकड़ी जाने वाली मछलियाँ आंतरिक मछलियों के क्षेत्र में शामिल हैं।

भारत की गंगा, ब्रह्मपुत्र, महानदी, ताप्ती, नर्मदा, कृष्णा और कावेरी नदियों में मछलियों की अधिकता है। वर्षा ऋतु में नदियों में बाढ़ आने के कारण मछली पकड़ने का कार्य धीमा हो जाता है, परन्तु वर्षा ऋतु की समाप्ति के साथ ही मछली पकड़ने का कार्य तेज हो जाता है। प. बंगाल में ताजे पानी या आंतरिक भागों में सर्वाधिक मछलियाँ पकड़ी जाती हैं।

तालाबों, जलाशयों आदि में जल की सतह कम होने के साथ-साथ मछलियाँ पकड़ने की गति में वृद्धि होती है। यहाँ मछली पकड़ने का विशेष समय अप्रैल से जुलाई तक होता है। तालाबों में मछली पकड़ने का कार्य अधिकतर तमिलनाडु, आन्ध्रप्रदेश, मध्य प्रदेश और प. बंगाल में होता है। इसके अतिरिक्त उड़ीसा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात आदि राज्यों में ताजे पानी की मछलियाँ पकड़ी जाती हैं।

सन् 1981 में 848 हजार मी. टन मछलियाँ आंतरिक क्षेत्रों में पकड़ी गयीं। आंतरिक क्षेत्रों के ताजे ज में पकड़ी जाने वाली मुख्य मछलियाँ कैट-फिश, सॉ- फिश, त्वाता, रेवा, एंकावी, चित्ताला, हेरिंग, मैकरेल, रोहू, महासीर, सुरेल आदि हैं।

3.नदियों के मुहाने के मछली क्षेत्र – भारत में नदियों के मुहानों पर मछली पकड़ने का कार्य- गंगा, कृष्णा, कावेरी, गोदावरी, ताप्ती, नर्मदा, महा नदी, ब्रह्मपुत्र आदि नदियों के मुहानों पर किया जाता है। सबसे अधिक मछलियाँ प. बंगाल के सुन्दरवन डेल्टाई क्षेत्र में पकड़ी जाती हैं।

यह क्षेत्र 5800 वर्ग मील क्षेत्र में विस्तृत है। यहाँ की भूमि दलदली है, अतः परिवहन की असुविधा के कारण यहाँ पकड़ी जाने वाली अधिकांश मछलियाँ सड़कर खराब हो जाती हैं।

4. मोती देने वाली मछलियों के क्षेत्र - भारतीय राष्ट्रीय योजना समिति के अनुसार मन्नार की खाड़ी, सौराष्ट्र के समुद्री तट और कच्छ की खाड़ी में ‘आइस्टर' प्रजाति की मछलियाँ अधिक हैं, जिनसे बहुमूल्य मोती प्राप्त किया जा सकता है। तमिलनाडु के कमारी द्वीप के तटवर्ती क्षेत्र पानवन में इस प्रजाति की मछलियाँ पकड़ी जाती हैं।

5. अन्य मछली क्षेत्र – आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु तथा केरल के कुछ दलदली समुद्र तटीय क्षेत्र में शंख मछलियाँ पकड़ी जाती हैं, जिसका उपयोग मंदिर में पूजा के लिए होता है। केरल तथा उड़ीसा के लैगून झीलों में भी मछलियाँ पायी जाती हैं।

मत्स्य उद्योग की समस्याएँ

भारत में मत्स्य उद्योग की सफलता की पूरी संभावना है पर अनेक समस्याएँ भी हैं। यही कारण है कि हमारे देश में मत्स्य उत्पादन कम है। यहाँ अभी भी छोटे-छोटे नावों में प्राचीन परंपरागत तरीके से मछली पकड़ी जाती है।

गहरे सागर में मछली पकड़ने की तकनीक का अभाव है। हमारे यहाँ परिवहन के तीव्र साधनों तथा शीत भण्डारों का अभाव है,

फलतः अधिक उत्पादन होने पर मछलियाँ बाजार तक जाने के पूर्व ही सड़ जाती हैं। इसके अलावा जल प्रदूषण, मछलियों के लिए भोज्य पदार्थ का अभाव भी इस उद्योग की अन्य प्रमुख समस्याएँ

मत्स्य संसाधन संरक्षण

भारत में मत्स्य व्यवसाय के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिए

1. नई तकनीक का प्रयोग - मत्स्य क्षेत्रों में नवीन तकनीकी द्वारा मछलियों को पकड़ने की व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि पकड़ी गई मछली का पूर्ण उपयोग हो सके।

2. प्रशीतन का विकास - मछली शीघ्र सड़ने वाली वस्तु है, अतः उसे अधिक समय तक सुरक्षित रखने के लिए प्रशीतकों का विकास अति आवश्यक हैं।

3. तीव्रगामी परिवहन की सुविधा - मछली निर्यात करने के लिए तीव्रगामी परिवहन साधनों की आवश्यकता है, जिससे शीघ्र मछलियों को निर्दिष्ट स्थानों पर पहुँचाया जा सके। इस सुविधा से मछली के माँग क्षेत्रों में विस्तार होगा और अत्यधिक मात्रा में मत्स्य उत्पादन को प्रोत्साहन मिलेगा।

4. वैज्ञानिक विकास - वृहत् पैमाने पर मत्स्योत्पादन के लिए वैज्ञानिक विकास से बहुत सहायता मिलती है। उदाहरणार्थ वैज्ञानिक विधियों द्वारा मछलियों को सुखाकर अधिक समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

मछलियों को डिब्बों में बन्द करने की नवीन विधि भी वैज्ञानिक विकास से सुलभ हुई है। डिब्बों में से वायु बाहर खींच ली जाती है, तब ऐसे वायुरोधी डिब्बों में मछलियाँ लम्बे समय तक विकृत नहीं होतीं हैं।

5. लुप्त प्राय प्रजातियों का संरक्षण - जिन मछलियों की संख्या बहुत कम रह गई है उनको पकड़ने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय समझौते द्वारा कठोर नियन्त्रण आवश्यक है। अन्य मछलियों को पकड़ने में विवेक से काम लेना चाहिए ताकि वे शीघ्र समाप्त न हो जाएँ।

6. मछुआरों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था - उन्नत तकनीक से मत्स्य संसाधन के उपयोग हेतु मछुआरों को प्रशिक्षित करना आवश्यक है। जैसा कि महाराष्ट्र, गुजरात एवं तमिलनाडु के कुछ स्थानों पर प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित किये गये हैं, जो कि स्वागतेय है। देश के अन्य भागों में भी प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की जानी चाहिए।

अतीत काल से ही मछली मनुष्य का मुख्य भोजन रहा है। आज कोई देश ऐसा नहीं है, जहाँ मछली न खायी जाती हो। जनसंख्या में तीव्र वृद्धि हो रही है और कृषि क्षेत्र का विस्तार कम हो रहा है।

ऐसी परिस्थिति में भोजन के रूप में मछली का महत्व और बढ़ गया है। अतः मत्स्य संसाधन के उत्पादन एवं संरक्षण में समन्वय होना आवश्यक है, जिससे मानव को पर्याप्त भोजन की पूर्ति होती रहे।

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