लघु एवं कुटीर उद्योगों की समस्याएँ ?

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लघु एवं कुटीर उद्योगों की प्रमुख समस्याएँ निम्नांकित हैं-

1. कच्चे माल की समस्या - लघु एवं कुटीर उद्योगों की कच्चे माल से संबंधित पाँच प्रकार की समस्याएँ हैं–

  • स्थानीय व्यापारियों द्वारा इनको घटिया किस्म का माल ही उपलब्ध कराया जाता है। 
  • कम मात्रा में क्रय करने के कारण इनको ऊँचा मूल्य देना पड़ता है। 
  • वे लघु उद्योग जो कच्चे माल के लिए वृहत् उद्योगों पर निर्भर हैं, जैसे-हाथकरघा के लिए मिलों का सूत, उन्हें समय पर एवं पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल नहीं मिल पाता है। 
  • आयातित कच्चा माल प्राप्त करने में तो इन उद्योगों को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और बहुत बार ये निर्धारित मात्रा में आयात करने में असमर्थ रहते हैं। 
  • सरकार द्वारा कच्चा माल आबंटित करते समय इन उद्योगों को पर्याप्त मात्रा में माल आबंटित नहीं किया जाता है। इससे इनको अच्छी किस्म का माल नहीं मिल पाता है।

2. तकनीक की समस्या - लघु एवं कुटीर उद्योगों की एक समस्या तकनीक की है। यह परम्परागत तकनीक को ही आज भी काम में ला रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप इनका उत्पादन आधुनिक नहीं बनता तथा उसकी लागत भी अधिक बैठती है। इसके कारण उसको बेचने में कठिनाई होती है तथा कम विक्रय मूल्य मिलता है।

3. वित्त की समस्या - वित्त की समस्या लघु एवं कुटीर उद्योगों की एक प्रमुख समस्या है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् इस ओर काफी प्रयत्न किये गये हैं। लेकिन फिर भी यह समस्या बनी हुई है। इस प्रकार के उद्योगों को दीर्घकालीन एवं अल्पकालीन दोनों प्रकार के वित्त की आवश्यकता होती है, जिसको बैंक, वित्त निगम, राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम आदि के द्वारा प्रदान किया जाता है। 

जो बहुत-सी कागजी कार्यवाही पूरी कराते हैं तथा सहायता स्वीकार करने में समय लगाते हैं। इन सभी कारणों से लघु उद्योगपति उनसे सहायता नहीं लेता है और स्थानीय साहूकारों एवं महाजन से ऋण प्राप्त कर लेता है। 

4. विपणन की समस्या - लघु एवं कुटीर उद्योगों की यह एक महत्वपूर्ण समस्या है। इनको अपनी वस्तुओं को बेचने में कठिनाई होती है। इनकी अपनी दुकानें न होने के कारण इन्हें बिचौलियों की सहायता से अपना माल बेचना पड़ता है, जिससे इनको उचित मूल्य नहीं मिल पाता। इनकी वस्तुएँ प्रमाणित भी नहीं होती हैं। 

अत: प्रत्येक वस्तु का अलग-अलग मूल्य लगाया जाता है। इनके पास ग्राहकों की बदलती हुई रुचि का पता लगाने का कोई साधन नहीं होता। परिणामस्वरूप रुचि बदलने पर, कम मूल्य पर वस्तुओं को बेचना पड़ता है। इनके विज्ञापन के साधन भी सीमित होते हैं। वृहत् उद्योगों से प्रतियोगिताएँ होती हैं। ये सभी कारण वस्तु को बेचने में कठिनाई उत्पन्न करते हैं।

5. वृहत् उद्योगों से प्रतियोगिता - लघु एवं कुटीर उद्योगों की एक समस्या वृहत् उद्योगों में बनी वस्तुओं से प्रतियोगिता है । वृहत् उद्योगों में बनी वस्तुएँ प्रमाणित, आकर्षक एवं सस्ती होती हैं, जबकि इस प्रतियोगिता के कारण इनको अपनी वस्तुएँ बेचने में कठिनाई होती है।

6. शक्ति की अपर्याप्तता - लघु एवं कुटीर उद्योगों की एक समस्या शक्ति की अपर्याप्तता है। इन उद्योगों को शक्ति पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाती है, जिसके अभाव में इनका उत्पादन कम मात्रा में ही होता है। 

7. सूचनाओं एवं परामर्शों का अभाव - लघु एवं कुटीर उद्योगों को अपने व्यवसाय से संबंधित सूचनाएँ उचित समय पर नहीं मिल पाती हैं। साथ ही इन्हें उचित परामर्श देने वाली संस्थाएँ भी कम हैं। इन दोनों बातों के अभाव में लघु व कुटीर उद्योग उन्नति नहीं कर पा रहे हैं।

8. कुशल प्रबंधकों का अभाव - लघु एवं कुटीर उद्योगों को चलाने में एक समस्या कुशल प्रबंधकों के अभाव की है। इन्हें कुशल प्रबंधक नहीं मिल पाते हैं, जिससे वे या तो लाभ ही नहीं कमा पाते हैं अथवा फिर वे घाटे में चलते हैं अथवा कम लाभ पाते हैं।

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