निक्षेप निधि क्या है?

निक्षेप निधि प्रणाली एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत स्वामित्व संबंधी परिवर्तन इलेक्ट्रॉनिक बही प्रविष्टि अन्तरण के द्वारा किया जाता है। इस प्रणाली में प्रतिभूतियों का भौतिक आदान-प्रदान नहीं किया जाता। निक्षेप-निधि के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं 

  • प्रतिभूतियों को सुरक्षित रूप से रखने के लिए उनके निक्षेप स्वीकार करना।
  • स्वामित्व के हस्तांतरण के साक्ष्य के रूप में प्रतिभूतियों की कम्प्यूटराइज्ड बही प्रविष्टि करना।  
  • बंधक रखी गई प्रतिभूतियों के विवरण को कम्प्यूटर पर रखना। 

विश्व के अलग-अलग देशों में प्राय: निम्नलिखित दो प्रकार की निक्षेप निधियाँ पाई जाती हैं- 

1. प्रतिभूतियों के भौतिक आदान-प्रदान विहीन निक्षेप विधि प्रणाली - इस प्रणाली के अन्तर्गत प्रतिभूतियों के प्रमाण-पत्र निक्षेप-निधि में सुरक्षित रूप से जमा हो जाते हैं तथा इनका सम्पूर्ण विवरण कम्प्यूटर पर ले लिया जाता है। इसके बाद इन प्रमाण-पत्रों का भौतिक चलन जाम कर दिया जाता है। 

इन प्रतिभूतियों के भावी क्रय-विक्रय से उत्पन्न स्वामित्व संबंधी परिवर्तन निक्षेप-निधि के इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखों में ही किए जाते हैं। कोई भी प्रमाण-पत्र जब एक बार निक्षेपनिधि में जमा कर दिया जाता है तो उससे संबंधित समस्त कारोबार उस समय तक केवल इलेक्ट्रॉनिक लेखांकन प्रणाली के द्वारा ही किया जा सकता है। जब तक कि वह प्रतिभूति उस निक्षेप निधि से वापस न निकाल ली जाए।

2. प्रतिभूति प्रमाण-पत्र विहीन निक्षेप - निधि प्रणाली - इस प्रणाली में प्रतिभूतियों के स्वामित्व के साक्ष्य के रूप में भौतिक रूप से कोई प्रमाण-पत्र आदि नहीं रखा जाता। स्वामित्व संबंधी अभिलेख केवल इलेक्ट्रॉनिक प्रविष्टियों के रूप में कम्प्यूटर पर रखे जाते हैं। इस प्रकार की प्रणाली उस समय परिपक्व मानी जाती है। जब शेयर धारकों को शेयर प्रमाणपत्र जारी किए जाने की आवश्यकता नहीं रहती। 

स्वामित्व में परिवर्तन संबंधी प्रविष्टियाँ कम्प्यूटर द्वारा कर ली जाती हैं इस प्रकार यह प्रणाली पूर्व प्रणाली की तुलना में काफी सस्ती है। लेकिन भारत में निवेशकों की मनोवृत्ति को देखते  हुए इस प्रणाली को यकायक ही नहीं अपनाया जा सकता। इसके लिए पहले निवेशकों में विश्वास पैदा करना होगा।

 भारत में निक्षेप निधि

भारत में 1992 के शेयर घोटाले के बाद, ऐसे घोटालों की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए एक तकनीकी समिति की सिफारिश पर प्रारंभ में शेयर प्रमाण-पत्रों के भौतिक आदान-प्रदान विहीन निक्षेप निधि प्रणाली को अपनाने का निर्णय लिया। इसके लिए राष्ट्रपति ने 21 सितम्बर, 1995 को एक निक्षेप निधि अध्यादेश, 1995 जारी किया। 

इससे संबंधित विधेयक बाद में लोकसभा में तो पारित हो गया, लेकिन राज्यसभा में पारित नहीं हो सका। इसी संदर्भ में एक अध्यादेश 7 जनवरी, 1996 को दोबारा जारी किया गया। इसके साथ ही भारत में निक्षेप निधियों की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हो गया है। इस अध्यादेश की प्रमुख विशेषताएँ अग्रांकित हैं -

1. प्रख्यापित अध्यादेश में प्रतिभूतियों के स्वामित्व संबंधी ब्यौरों को बही प्रविष्टि रूप में दर्ज करने हेतु कानूनी ढाँचे की व्यवस्था की गई है।

2. निवेशकों को मौजूदा शेयर प्रमाण-पत्रों को जारी रखने अथवा निक्षेप-निधि प्रणाली को अपनाने का विकल्प खुला रखा गया है।

3. स्थापित की जाने वाली प्रत्येक निक्षेप निधि सेबी के पास पंजीकृत होगी तथा सेबी द्वारा निर्धारित शर्तों को पूरा करते हुए प्रमाण-पत्र प्राप्त करके ही कारोबार प्रारंभ कर सकेगी।

4. निक्षेप - निधि के माध्यम से होने वाले समस्त भुगतान, लेन-देन एवं अन्तरण स्टाम्प शुल्क के भुगतान से मुक्त होंगे।

5. जो निवेशक निक्षेप - निधि प्रणाली को अपनाएँगे, उनके द्वारा धारित प्रतिभूतियों के शेयर प्रमाण-पत्र निक्षेप-निधि के पास जमा होकर विपदार्थीकृत हो जायेंगे।

6. नई प्रतिभूतियों के निर्गमकर्ता निवेशकों को वास्तविक प्रतिभूतियाँ प्राप्त करने या निक्षेप - निधि प्रणाली को अपनाने का विकल्प देंगे।

7. निक्षेप-निधि प्रणाली में स्वामित्व संबंधी परिवर्तन इलेक्ट्रॉनिक बही प्रविष्टि अन्तरण के जरिए दिया जायेगा । 

भारतीय शेयर एवं प्रतिभूति बाजार के सुधार हेतु उपाय

केन्द्रीय बजट (2001-02) में भारत में एक पारदर्शी एवं सक्रिय ऋण बाजार विशेषतः सरकारी प्रतिभूति बाजार विकसित करने के उद्देश्य से निम्नांकित उपायों की उद्घोषणा की गई -

1. भारतीय रिजर्व बैंक के सक्रिय प्रोत्साहन के अधीन एक क्लीयरिंग कार्पोरेशन की स्थापना की जाएगी। भारतीय स्टेट बैंक इसका प्रमुख प्रर्वतक होगा । यह कार्पोरेशन विदेशी मुद्रा के लेन-देन का व्यवस्थापन करने में सहायक होगा।

2. सरकारी प्रतिभूतियों का विक्रय आदेश संचालित स्क्रीन आधारित प्रणाली द्वारा किया जाएगा।

3. भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नीलामियों में पारदर्शक इलेक्ट्रॉनिक बोलियों तथा वास्तविक समयाधार पर सरकारी प्रतिभूतियों के लेन-देन को सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से एक इलेक्ट्रॉनिक वार्तालाप - युक्त लेन-देन प्रणाली की स्थापना की जाएगी।

4. विधियों के सरल एवं तीव्र अंतरण हेतु एक इलेक्ट्रॉनिक निधि अंतरण तथा वास्तविक समय सकल व्यवस्थापन प्रणालियों की संस्थापना भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा की जाएगी।

5. जीरो कूपन बॉण्ड, स्ट्रिप्स, डीप- डिस्काउण्ट बॉण्ड तथा इसी प्रकार के अन्य बॉण्ड जारी करने को बढ़ावा देने हेतु केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड द्वारा स्पष्टीकरण जारी किए जा रहे हैं ।

6. पुराने लोक ऋण अधिनियम के स्थान पर सरकारी प्रतिभूति अधिनियम लाया जाएगा।

7. प्रतिभूतिकरण से संबंधित एक व्यापक कानून-निर्मित किया जाएगा।

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