द्वितीय विश्व युद्ध के परिणाम क्या थे?

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व में निम्नलिखित महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। इनकी पृष्ठभूमि में राष्ट्रीयता की भावना काम कर रही थी।

द्वितीय विश्व युद्ध के परिणाम 

1. मित्रराष्ट्रों ने स्वाधीनता और लोकतंत्र के नाम पर द्वितीय विश्वयुद्ध को लड़ा था। युद्ध के बाद एशिया, अफ्रीका तथा अन्य महादेशों में स्थित मित्रराष्ट्रों की जनता स्वाधीनता की माँग करने लगी। इसके लिए उन्होंने आंदोलन भी शुरू किया।

2. युध्द के बाद विश्व की स्थिति में काफी परिवर्तन हुआ। ब्रिटेन, फ्रांस, हालैण्ड आदि साम्राज्यवादी देशों में इतनी शक्ति नहीं रह गई थी कि वे अपने विरूद्ध होने वाले आंदोलन को रोक लेते। फलतः उनके अधीनस्थ देश एक-एक करके स्वतंत्र होने लगे।

3 युद्ध में सोवियत रूस की सर्वाधिक क्षति हुई, पर अब वह और भी शक्तिशाली राष्ट्र बन गया। 

4. अनेक यूरोपीय देशों में समाजवादी राज्य की स्थापना हो गई।

5. ब्रिटेन अब विश्वशक्ति नहीं रह गया।

6. इस समय भारत में ब्रिटिश शासन के प्रति विरोध चरम सीमा पर था। 1943 में बंगाल में भीषण अकाल पड़ा था। उसमे लगभग तीन लाख लोगों की मृत्यु हुई थी। 

ब्रिटिश सरकार ने अकालपीड़ितों की राहत के लिए कुछ नहीं किया। इसमें युद्ध के बाद लोगों का दबा हुआ क्रोध ब्रिटिश शासन को आखिरी चोट देने के लिए फूट पड़ा।

7. आजाद हिन्द फौज के अधिकारियों पर मुकदमा चलाया गया। इससे पूरे देश में सनसनी फैल गई थी। 

8. भारतीय नौसेना के नाविकों ने भी विद्रोह कर दिया था।

इन सब स्थितियों से ब्रिटिश सरकार को यह स्पष्ट हो गया कि भारत को अब और पराधीन रखना संभव नहीं है। '

वैवेल योजना और शिमला सम्मेलन- सन् 1943 में वैवेल भारत में वायसराय होकर आए। अंतरिम सरकार की स्थापना हेतु वैवेल ने एक योजना प्रकाशित की, जिसे वैवेल योजना कहते हैं। इस पर विचार करने के लिए सभी प्रमुख राजनीतिक दलों का शिमला में एक सम्मेलन हुआ, पर मुस्लिम लीग और काँग्रेस में मतभेद के कारण यह योजना सफल नहीं हुई।

कैबिनेट मिशन- 1946 में द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद इंग्लैंड में चर्चिल की सरकार का पतन हुआ। जब तक चर्चिल प्रधानमंत्री रहे, उन्होंने भारत की स्वतंत्रता का विरोध ही किया । चर्चिल सरकार के पतन के बाद इटली के मजदूर दल की सरकार बनी, जिसने भारत की राजनीतिक समस्या का समाधान करने का निश्चय किया। 

अतः ब्रिटिश मंत्रिमंडल की ओर से तीन प्रतिनिधियों का एक मिशन भारत आया। इस मिशन की योजना को 'कैबिनेट मिशन योजना कहते हैं। इसके अनुसार भारत को स्थायी संविधान बनाने और उसके निर्माण हेतु एक संविधान सभा के गठन का अधिकार दिया गया। 

जब तक संविधान नहीं बन जाता तब तक केन्द्र में एक अंतरिम सरकार की व्यवस्था की जाएगी। इस योजना के अनुसार 1946 में संविधन सभा का निर्वाचन हुआ और केन्द्र में अंतरिम सरकार की स्थापना हुई।

आजाद हिन्द फौज और सैनिकों का विद्रोह

आजाद हिन्द फौज- सुभाष चन्द्र बोस के विचार गाँधीजी से पूरी तरह नहीं मिलते थे। उनका अँग्रेजों की भलमनसाहत पर भरोसा नहीं था। गाँधीजी के विरोध के बावजूद 1939 में वे काँग्रेस के सभापति दुबारा चुने गए थे। पर काँग्रेसियों के विरोध के कारण उन्होंने काँग्रेस छोड़कर फारवर्ड ब्लॉक की स्थापना की। 

जिस समय भारत में 1942 का आंदोलन चल रहा था उस समय विदेशों में भारतीय भारत से अंग्रेजों को बलपूर्वक भगाने के लिए एक संगठन बना रहे थे। इस संगठन के नेता थे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, जो ब्रिटिश सरकार की नजरबंदी से छिपकर भाग खड़े हुए थे।

सुभाषचन्द्र बोस काबुल होते हुए पहुँचेगा पहुँचे और वहाँ से जापान के बाद सिंगापुर पहुँचे। भारत से 1915 में फरार होकर प्रसिद्ध क्रांतिकारी रासबिहारी बोस जापान चले गए थे। वहाँ उन्होंने इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की। 

दक्षिण-पूर्व एशिया में ब्रिटिन को हराकर जापानियों ने बहुत से भारतीय सैनिकों को बंदी बनाया था। उन सैनिकों को साथ लेकर आजाद हिन्द फौज का गठन किया गया था। सुभाषचन्द्र बोस ने इंडियन इंडिपेंडेंस लीग का नेतृत्व स्वयं संभाला तथा आजाद हिन्द फौज का पुनर्गठन किया। 

सैनिकों के बीच वे नेताजी के नाम से प्रसिद्ध हुए। आजाद हिन्द फौज के पुनर्गठन का एकमात्र उद्देश्य था भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराना। उन्होंने नारा दिया- तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा।

21 अक्टूबर 1943 को सुभाषचन्द्र बोस ने स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार की घोषणा की। 1944 में आजाद हिन्द फौज जापानी सेनाओं के साथ पूर्वोत्तर भारत के इम्फाल - कोहिमा क्षेत्र तक पहुँच गई, पर उस समय तक युद्ध का पासा पलट जाने के कारण उन्हें पीछे हटना पड़ा। 

जर्मनी हार चुका था और जापान की स्थिति भी नाजुक हो गई थी । नेतृत्व के आभाव में जापान के पतन के बाद आजाद हिन्द फौज का भी पतन हो गया। उसके अधिकांश सैनिक तथा अफसर पकड़ लिए गए। 

नवम्बर 1945 में आजाद हिन्द फौज के तीन प्रमुख अफसरों- ढिल्लन, सहगल और शाहनवाज पर अँग्रेज शासन अर्थात् ब्रिटिश साम्राज्य के विरूद्ध षडयंत्र के अपराध में मुकदमा चलाया गया।

इसके लिए दिल्ली के लाल किले में एक सैनिक अदालत कायम की गई। इस समाचार को सुनकर भारतीय जनता उत्तेजित हो उठी। देश के बड़े-बड़े वकील बैरिस्टर निःशुल्क इस मुकदमें की पैरवी के लिए पहुँचे। स्वयं पंडित जवाहरलाल नेहरू 30 वर्षों के बाद वकील की आदालती पोशाक में बहस करने के लिए लाल किला गए। 

सैनिक आदालत ने अभियुक्तों को आजीवन कारावास का दण्ड सुनाया जिसे बाद में वायसराय ने अपने विशेषाधिकार का प्रयोग कर रद्द कर दिया।

सैनिकों का विद्रोह - 1945-46 में एक अन्य महत्वपूर्ण घटना घटी। अनेक स्थानों पर सैनिकों का विद्रोह हुआ। दमदम हवाई अड्डे पर हवाई सैनिकों ने विद्रोह किया । बम्बई में भी नौ सैनिकों ने विद्रोह किया। 

सरकार की माँगों की पूर्ति के संबंध में सूचना दी गई और सार्वजनिक सभाओं का आयोजन किया गया इन सैनिक विद्रोहों ने ब्रिटिश साम्राज्य को आंदोलित कर दिया।

मुस्लिम लीग की धमकी और अंतरिम सरकार

मुस्लिम लीग की धमकी - इस समय अप्रैल, 1946 में मुस्लिम लीग का अधिवेशन दिल्ली में हुआ। उसमें पाकिस्तान की माँग को दोहराया गया और स्पष्ट घोषणा की गई कि मुस्लिम लीग की ओर से पाकिस्तान की माँग मनवाने के लिए प्रत्यक्ष कार्यवाही की जाएगी। इस अवसर पर मुस्लिम लीग के प्रमुख नेताओं ने जो भाषण दिए वे बड़े ही कटु और उत्तेजक थे।

अन्तरिम सरकार- केबिनेट मिशन की योजना के अनुसार 1946 में संविधान का निर्वाचन हुआ और उसमें बहुसंख्यक रूप से काँग्रेसी सदस्य चुने गए। 

12 अगस्त को लॉर्ड वैवेल ने पंडित नेहरू को अस्थायी सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। जिसमें बाद में मुस्लिम लीग के सदस्य भी शामिल हुए। पर लीग के सदस्य अस्थायी सरकार के कार्यों में सहायता करने के बजाय अड़ंगा खड़ा करने लगे।

प्रत्यक्ष कार्यवाही- मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की प्राप्ति के लिए प्रत्यक्ष कार्यवाही करने का निश्चय किया। जुलाई 1946 में उसने इस संबंध में एक प्रस्ताव स्वीकार किया। 

काँग्रेस के अंतरिम सरकार में प्रवेश को लीग ने हिन्दू राज्य का अत्याचार बताया और उससे अलग होने के लिए उससे 16 अगस्त, 1946 को प्रत्यक्ष विरोध दिवस मनाने की घोषण की। फलतः बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब आदि प्रदेशों में हिन्दू-मुसलमानों के बीच भयंकर दंगे हुए।

एटली की घोषणा - संकटपूर्ण एवं दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में ब्रिटिश प्रधान मंत्री लॉर्ड एटली ने 20 फरवरी, 1947 को यह घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार जून, 1948 तक भारतीयों के हाथ सत्ता हस्तांरित कर देगी, चाहे भारतीय राजनैतिक दलों में समझौता हो या नहीं। लॉर्ड एटली मजदूर (लेबर) पार्टी के नेता थे।

माउंटबेटन योजना- लॉर्ड वैवेल के स्थान पर लॉर्ड माउंटबेटन भारत में अंतिम अँग्रेज वायसराय नियुक्त हुए। 24 मार्च, 1947 को वे दिल्ली पहुँचे और आते ही भारत की राजनीतिक समस्या के हल का प्रयास करने लगे। 

भारतीय नेताओं से विचार-विमर्श करने के बाद वे मई में इंग्लैण्ड गए। वहाँ से वापस आने के बाद जून 1947 में उन्होंने एक योजना निकाली, जो माउंटबेटन योजना के नाम से प्रसिद्ध है।

भारत की स्वतंत्रता और विभाजन- लॉर्ड माउण्टबेटन 24 मार्च, 1947 को लॉर्ड वैवेल के स्थान पर गवर्नर जनरल बने। उन्होंने जब भारत की स्थिति को देखा तो जून 1948 तक इंतजार करना ठीक नहीं समझा। उन्होंने 3 जून, 1947 को भारत की दो स्वतंत्र प्रभुत्ता संपन्न राज्यों भारत तथा पाकिस्तान में विभाजित करने की अपने योजना घोषित की। 

काँग्रेस साम्प्रदायिकता के आधार पर भारत का विभाजन कदापि स्वीकार नहीं करती। जिनना ने स्पष्ट कर दिया था कि वे मुसलमानों के लिए स्वतंत्र पाकिस्तान से कम कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे । अतः काँग्रेस को इस योजना को स्वीकार करना पड़ा।

माउंटबेटन योजना की घोषणा के बाद दंगों ने और भी विकराल रूप ले लिया। मुस्लिम लीग द्वारा कटुता फैलाने के खतरनाक परिणाम हुए। जनता को क्रूरता और पशुता का शिकार होना पड़ा। लगभग 5 लाख लोग मारे गए और करोड़ों बेघर हो गए। महात्मा गाँधी ने स्थिति पर नियंत्रण रखने का अथक प्रयास किया। किन्तु असफल रहे।

ऐसी दुःखद परिस्थितियों में 15 अगसत, 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ। यह स्वतंत्रता भारती स्वतंत्रता अधिनियम भारत की स्वतंत्रता पूर्व संध्या पर नेहरू जी शपथ लेते हुए। 1947 के अंतर्गत घोषित किया गया। 

जिन्ना की जीत हुई और उन्हें उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत सिंध, पूर्वी बंगाल, पश्चिम बंगाल तथा बलुचिस्तान मिल गया। भारतीयों ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि इस प्रकार साम्प्रदायिकता पर आधारित विभाजन के साथ स्वतंत्रता प्राप्त करेंगे।

भारत जब स्वतंत्र हुआ ( 15 अगस्त, 1947 ) उस समय महात्मा गाँधी कलकत्ता में थे। वहाँ वे मुसलमानों और हिन्दुओं में मित्रता, प्रेम स्थापित करने में व्यस्त थे। जब पश्चिम बंगाल के मंत्री महात्मा गाँधी से मिले तो महात्मा गाँधी जी ने उनसे कहा- नम्र बनो। 

सत्ता से सावधान रहो। सत्ता भ्रष्ट कर देती है। याद रखों कि तुम अपने पद पर गरीब भारत के गाँवों की सेवा करने के लिए हो। जब गाँधी जी 30 जनवरी, 1948 को दिल्ली की एक प्रार्थना सभा में भाग लेने के जा रहे थे तभी नाथू राम गोडसे ने उसकी हत्या कर दी। इससे समाज में शांति और सौहार्द्र लाने के उनके प्रयासों का अचानक और दुखद अंत हो गया।

माउंटबेटन योजना की मुख्य बातें

1. ब्रिटिश सरकार की यह इच्छा है कि वह शीघ्र ही भारत का प्रशासन किसी ऐसी सरकार को सौंप दे, जिसका निर्माण जनता की इच्छा से हुआ हो।

2. संविधान सभा के कार्यों में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न न हो।

3. वर्तमान संविधान सभा द्वारा बनाया गया संविधान भारत के उन भागों में कार्यान्वित नहीं होगा, जो उसे स्वीकार नहीं करेंगे।

4. उन प्रान्तों को जो भारत में शामिल होना नहीं चाहते, आत्मनिर्णय का अधिकार होगा। 

5. देशी राज्यों के संबंध में मंत्रिमंडलीय योजना लागू होगी।

6. यदि मुस्लिम क्षेत्र देश के विभाजन का समर्थन करती है तो भारत और पाकिस्तान के सीमा निर्धारण के लिए एक कमीशन की नियुक्ति होगी।

7. ब्रिटिश सरकार 1948 तक सत्ता हस्तांतरित करने की प्रतीक्षा नहीं करेगी, बल्कि 1947 में ही यह कार्य सपन्न कर देगी।

भारत स्वतंत्र अधिनियम 1947- देश का विभाजन और स्वतंत्रता प्राप्ति - भारत स्वतंत्रता अधि नियम 1947 को भारत स्वतंत्र विधेयक पेश हुआ। दो सप्ताह के बाद वह विधेयक पारित हो गया और भारत स्वतंत्रता अधिनियम के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

भारत स्वतंत्रता अधिनियम के प्रमुख उपबंध- 1. इसके द्वारा 25 अगस्त, 1947 को भारत को दो अधिराज्यों में विभक्त कर दिया गया। जिनके नाम भारत और पाकिस्तान पड़े। भारत के अंतर्गत बम्बई, मद्रास, यूपी, एमपी, बिहार, उड़ीसा, पूर्वी पंजाब, पश्चिमी बंगाल और मुस्लिम क्षेत्र को छोड़कर असम, दिल्ली और अजमेर मारवड और कुर्ग रखे गए। पाकिस्तान के अंतर्गत पूर्वी गाल, पश्चिमी पंजाब, सिंध, ब्रिटिश ब्लूचिस्तान, उत्तर पश्चिमी सीमाप्रांत तथा असम के मुस्लिम क्षेत्र को रखा गया।

2. नए संविधान के निर्माण तक भारत और पाकिस्तान दोनों राज्यों में ब्रिटिश साम्राट की ओर से नियुक्त एक-एक गवर्नर जनरल रखने की व्यवस्था की गई।

3. गवर्नर जनरल का पद केवल अलंकारिक रखा गया।

4. 15 अगस्त, 1947 के बाद देशी राज्यों पर से ब्रिटिश संप्रभुत्ता की समाप्ति हो जाएगा और उनके साथ हुई संधियाँ अपने आप समाप्त हो जाएगी।

5. विभिन्न देशी राज्यों को दो में से किसी एक उपनिवेश में सम्मिलित होने या स्वतंत्र रहने की स्वतंत्रता दी गई।

6. भारत और पाकिस्तान दोनों उपनिवेशों को अपने इच्छानुसार ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में सम्मिलित होने या उससे संबंध विच्छेद का अधिकार प्रदान किया गया।

7 दोनों राज्यों में मंत्रिमंडल को अपने-अपने राज्य के गवर्नर जनरल के मनोनयन का अधिकार सौंपा गया।

8. भारत सचिव का पद समाप्त कर दिया गया।

9. संविधान सभा को अपने-अपने अधिराज्यों के लिए कानून बनाने का अधिकार सौंपा गया।

15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्रता अधिनियम लागू हुआ और भारत तथा पाकिस्तान नामक दो स्वतंत्र राज्यों की स्थापना हुई। मि. जिन्ना पाकिस्तान के गवर्नर जनरल हुए और लॉर्ड माउंटबेटन भारतीय परिषद् द्वारा भारत के गवर्नर जनरल मनोनीत हुए।

गणराज्य की स्थापना- 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्र संविधान बनाने का कार्य हुआ। इसके पूर्व ही स्वाधीन भारत का संविधान सभा द्वारा आरम्भ किया गया। सविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे डॉ. बी. आर. अम्बेडकर। प्रारूप समिति ने अपना काम संविधान 26 26 नवंबर 1949 को पूरा किया। 

भारत का नया जनवरी, 1950 को लागू किया गया। इसके अनुसार भारत को गणराज्य घोषित किया गया। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद प्रथम राष्ट्रपति और पं. जवाहर लाल नेहरू प्रथम प्रधानमंत्री बने। हम लोग हर वर्ष 15 अगस्त को स्वाधीनता दिवस और 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाते हैं।

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